Friday, December 4, 2020

559 ...तुम प्रेम के सागर में आँखें मूँद डूब जाओ

सादर अभिवादन
अभी तक ठीक-ठाक है दिसम्बर
कोई नया लफड़ा नहीं
खुशी है इसी बात की
चलिए रचनाएँ  देखते हैं....



तुम्हारे हुस्न से जलतीं हैं ,
कुछ हूरें  भी जन्नत  में ,

ये रश्क़-ए-माह-ए-कामिल है,
फ़लक जलता अदावत में ।




अभी खोल में ढका बीज है 
अभी बंद है उसकी दुनिया, 
उर्वर कोमल माटी  पाकर 
इक दिन सुंदर वृक्ष बनेगा !





क्षुधा  तुम्हारी है असीम
कभी समाप्त नहीं होती
है ऐसा क्या उसमें विशेष
जिसे देख कर तृप्त नहीं होते |
इस प्यास का कोई तो उपचार होगा




अनेकों बार हम, ग़लत नहीं होते, 
हमें जो सही, साबित कर सके, 
बस, वो शब्द नहीं होते, 
इसी बिंदु पर आ कर रुक जाती है ज़िन्दगी, 
कैसे समझाएं तुम्हें, 
हर इम्तहान के नतीजे, 
शत प्रतिशत नहीं होते। 





देखो ! नील मणि-सा नीला आसमान 
सफ़ेद लिबास में इस पर दौड़ते अबोध छौने 
तुम प्रेम के सागर में आँखें मूँद डूब जाओ 
देखो! अपने पैरों से ध्यान हटाओ तुम 
मैंने कहा न ध्यान हटाओ 
अभी-अभी टूटी हैं बेड़ियाँ  पैरों से 
स्याही से लिखे फ़रमान की बातें न कहो तुम। 
...
बस
कल आएगी सखी श्वेता
सादर 

6 comments:

  1. सुन्दर संकलन व प्रस्तुति, मुझे जगह देने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।

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  2. उम्दा संकलन आज का |मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

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  3. बहुत बहुत सुन्दर रचना |

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  4. पठनीय रचनाओं का सुंदर संयोजन, आभार !

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