सादर वन्दे
मुस्कुराहटे तो कई आयी थी..
मेरे चेहरे पर कोई जंची ही नही..
फिर उसने मुस्कुरा के देखा मेरी तरफ़
एक ज़रा सी बात पर फिर जीना पड़ा मुझे !!
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रचनाएँ...
फिर उसने मुस्कुरा के देखा मेरी तरफ़
एक ज़रा सी बात पर फिर जीना पड़ा मुझे !!
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रचनाएँ...
मुस्कुराहट लबों पर, सजी रहने दीजिए ।
ग़म की टीस दिल में, दबी रहने दीजिए ।।
छलक उठी हैं ठेस से, अश्रु की कुछ बूंद ।
दृग पटल पर ज़रा सी,नमी रहने दीजिए
यह चंचल-चालाक बड़ी है
हाथ किसी के कभी न आती
हाथो कि छाया भी उस पर
पड़ी कि वह झट से उड़ जाती
है नवल जीवन सवेरा
हंस चुगते प्रीत मोती
प्राण की उर्वर धरा पर
भावनाएँ बीज बोती
खिल उठा उपवन अनोखा
चहकता है अब उभय से।।
इस सब में बहुत कुछ निकल के आ जाता है
बिना मथे भी दही से कैसे मक्खन को निकाला जाता है
लिखना कोई सीख पाये या ना पाये
एक होशियार
और समझदार पाठक
लेखक के लिखे का मतलब निकाल कर
लेखक को
जरूर समझा जाता है ।
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आज बस..
सादर..
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आज बस..
सादर..
नया नहीं पुराना कूड़ा है दिव्या जी आभार ले आने के लिये :)
ReplyDeleteउव्वाहहहहहह..
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति
आभार..
सादर..
सहृदय आभार दिव्या जी,सुंदर प्रस्तुति,मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार
ReplyDeleteसुन्दर संकलन । मेरे सृजन को साझा करने के लिए हार्दिक आभार दिव्या जी ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर संकलन
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