Monday, December 14, 2020

569 ..चैन लिखना बैचैनी होते हुऐ किसलिये सोचना क्या रखी है और कहाँ रखी है

सादर वन्दे
कल अचानक गड़बड़ हो गई थी
लैपटॉप जवाब दे दिया था
खैर मशीन ही तो है
....
आज की रचनाएँ...

निराधार आकाश ...पुरुषोत्तम सिन्हा



देशहित विरुद्ध, न आंदोलन कोई,

देशहित से बड़ा, होता नहीं निर्णय कोई,

देशहित से परे, कहाँ संसार मेरा,

देशहित ही रहे संस्कार मेरा,

पर, डिग रहा क्यूँ, विश्वास मेरा!


जहर की उस खुमानी को, लेकर साथ आई हूँ।
..गीता पाण्डेय 'अपराजिता'


गमों की फिर से एक,

कहानी लेकर आई हूँ ।

गुजरे वक्त की अपनी,

निशानी लेकर आई हूँ।1।


आग नफरतों की इस,

दुनिया से मिटाने को ,

मैं आज ऑखों में वही,

पानी ले कर के आई हूँ ।2।


समर्पण ....अजनबी


अपनी मोहब्बत को इक नाम यह भी दे दो-

ये अजनबी सी आंखों का समर्पण है बस


ना तुम हो, ना मैं हूं, ना जमाने की भीड़-

हम दोनों के बीच खड़ा गूंगा दर्पण है बस।

तम शीत ऋतु की तरह आती हो ..ज्योति खरे


तुम्हारे आने की सुगबुगाहट से

खड़कियों में 

टांग दिए हैं

गुलाबी रंग के नये पर्दे 

क्योंकि

तुम्हें धूप का छन कर

कमरे में आना बहुत पसंद है



तेरे बिना चैन कहाँ रे..

बैचेनी लिखने में भी दिख जाता है चैन

चैन से नहीं लिखा कर बैचनी यूँ ही

खदानों तक में 

खोदना तुम को आता है

किसे मालूम है जरूरी है कुदालें भी

किसे पता है कहाँ रखी हैं 


‘उलूक’ जानता है

चैन है ही नहीं कहीं सारे बैचेन हैं


बताते नहीं हैं 

लिखा करना जरूरी है चैन

अपने लिये ना सही

बैचेन के लिये सही

बैचैनी है पता है कहाँ रखी है।

....
बस..
सादर..




4 comments:

  1. बेहतरीन अंक..
    आभार..
    सादर..

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  2. शुभ संध्या .....आभार आदरणीया दिव्या जी

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  3. बहुत सुंदर लिंक संयोजन
    सभी रचनाकारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करे का आभार
    सादर

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