Wednesday, November 20, 2019

181.."वसुधैव कुटुम्बकम " का सार्थक रूप

सादर अभिवादन
विविधता से भरी आज की प्रस्तुति


शरणार्थी ....रिंकी राऊत

हवा महल, जामनगर
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण और भीषण रक्तपात मचाया तब स्त्री और बच्चो की रक्षा करने हेतु पोलैंड के सैनिको ने 500 महिलाओ और लगभग 200 बच्चों को एक बड़े समुद्री जाहज में बैठाकर समुद्र में छोड़ दिया ताकि उनका जीवन बच सके

किसी देश ने शरण नहीं दी, काफी दिनों समुद्र में भटकने के बाद वो जहाज गुजरात के जामनगर के तट पर आया।
उस समय जामनगर के महाराजा “जाम साहब दिग्विजय सिंह” थे जिन्होंने भूख प्यास से बेहाल और कमजोर हो चुके उन पांच सौ महिलाओ बच्चो को अपने राज्य में शरण दी ..महाराजा ने कहा, “ मैं इस क्षेत्र का बापू हूँ और तुम मेरे राज्य में आये हो तो तुम्हारा भी बापू हूँ इसीलिए तुम्हारी हर जरुरत पूरी की जाएगी। 


ये गुजरता हुआ वक़्त...!!! ...सुषमा वर्मा


शादी एक ख्वाब....
जिंदगी की नई शुरुआत..
और तब और भी खूबसूरत,
जब खुद की मर्जी भी शामिल होती है....
इक मुस्कराहट, इक चमक,धड़कता दिल,
घबराती सांसे....ऐसा ही कुछ होता है....
जिम्मेदारियां, नए रिश्तो को संजोने की ललक....
मैं तो इन सब के लिए तैयार हो गयी हूँ,



लहरों जैसे बह जाना ...अमित निश्छल

शून्यकाल में उच्छृंखल
शीशों को ऊँचे ताने
घनघोर गर्जना करते
अंबुधि के गाये गाने
मूक छंद को परिभाषित
अपनी छवि से कर देता
व्यथित हृदय है, अधरहीन
गीतों को स्वर जो देता
तारों के किसलय के खिलते, 
नवनीत रूप फहराना
मुझको भी सिखला दो चंदा, 
लहरों जैसे बह जाना


सुबह सुबह की धूप ...विजय कल्याणी तिवारी

हरित वसन वसुधा सजी
तन मोती बहुमूल्य
प्रकृति का उपहार सखा
अनगिन और अतुल्य
शुभ्र रजत लिपटे हुए
गिरि लगते ज्यों भूप
किरणों से ऋंगारित है
नभ का अनुपम रुप ।


पुरुष दिवस पर कविता .....अर्चना चतुर्वेदी 

तुमने कहा मर्दों के दिल नहीं होता
और मैं मौन आंसू पीता रहा .और छुपाता रहा अपने हर दर्द को
और उठाता रहा हर जिम्मेदारी हँसते हँसते ..
ताकि तुम महसूस ना कर सको किसी भी दर्द को और खिलखिलाती रहो यूँ ही


चाँद -सा मुखड़ा ...ज्योति नामदेव

नामों में क्या रखा है जनाब
अपनी कस्तूरी को खोजिए
और आप भी बन जाइए
चाँद -सा मुखड़ा
किसी जिंदगी का टुकड़ा
...
आज्ञा दें
कल फिर मिलते हैं
सादर



5 comments:

  1. उत्तम रचनाओं से अंकित मनोहारी अंक। हवामहल वाली कहानी मेरे लिए बिल्कुल नयी थी, मगर पड़ने के बाद अपनी सांस्कृतिक विरासत पर और भी अधिक गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ।
    "सुबह सुबह की धूप ...विजय कल्याणी तिवारी" इस रचना को पढ़कर मन आह्लादित हो गया, क्या ख़ूब लिखा है, वाह।
    इसअच्छे संकलन सै अवगत कराने के लिए आपका आभार एवं सादर नमन आदरणीया यशोदा मैम।

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  2. उपरोक्त टिप्पणी में टंकण त्रुटियों के लिए क्षमाप्रार्थी🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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  4. आदरणीय दीदी, सादर प्रणाम। आज की प्रस्तुति में सखी रिंकी के लेख के साथ सभी रचनाओ को पढ़कर बहुत अच्छा लगा। सच कहा प्रिय अमित ने , ये लेख पढ़कर वसुदेवकुटुंबकम् की भावना से भरे भारतीय संस्कारों पर असीम गर्व की अनुभूति हो रही है। सभी से अनुरोध है सभी रचनाओ के साथ ये लेख पढ़ना ना भूलें। प्रिय अमित निश्छल का लेखन बेमिसाल है। उनकी रचना भी मुक्त कंठ से सराहनीय है। बाकी तीनों रचनाएँ भी बहुत उल्लेखनीय हैं। सभी सुदक्ष रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई और आभार। आपको भी आभार , अस्वस्थता के साथ हररोज इतनी सुंदर प्रस्तुतियों के लिए 🙏🙏🙏आशा है बांह की हालत पहले से कुछ तो बेहतर होगी। आपकी शीघ्र कुशलता की कामना है 🙏🌹🌹🌹🌹💐

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    1. सधन्यवाद आदरणीया नमन दीदी।

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