Tuesday, November 12, 2019

173..फ़ख़्र अब तो गाँव को भी नहीं रहा

स्नेहिल नमस्कार
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आज के सांध्य संस्करण में 
आप सभी का हार्दिक स्वागत है।

तल्खियों का दौर है साहिब
सीमित विचारों के दायरे में
दिल्ली का दर्द सुनकर क्या करेंगे?
इसपर दाद मिलती नहीं मुशायरे में।

प्याज़ के भाव से उनको फर्क़ नहीं
धर्म नाम के सिक्के सस्ते है आजकल
क्या देखियेगा आइपीएल या फुटबॉल?
ये मैच राजनीति के बच्चे भी समझते हैं आजकल

★★★★★

आज की रचनाओं का आनंद लीजिए


समभाव भरी ये पुण्यधरा .
गीता भी जहाँ ,  क़ुरान भी है
कुनबा ये वासुदेव का है,
यहाँ राम है ,तो रहमान भी है;
कभी ना आंकों कम, 
इस   परिवार की शक्ति को ! 

★★★★★★

तुमको गर हैरानी है, तो कह सकते हो
रिश्ता ये बेमानी है, तो कह सकते हो
मैं बाहर से जो भी हूँ वो ही अंदर से
ये मेरी नादानी है, तो कह सकते हो

★★★★★★★


चुपचाप खड़ी जो हो गई थीं मेरे साथ
फोटो-फ्रेम से बाहर निकल के

एक कील भी नहीं ठोक पाया था   
सूनी सपाट दीवार पे

हालांकि हाथ चलने से मना नहीं कर रहे थे 
शायद दिमाग भी साथ दे रहा था
पर मन ...
वो तो उतारू था विद्रोह पे 

★★★★★★★


हैवानियत की इंतिहा हो चुकी, 
इंसानियत की  बदलती तस्वीर कैसे दिखाऊँ ? 
मर रहा मर्म मानवीय मूल्यों  का,   
स्वार्थ के  खरपतवार को कैसे जलाऊँ ? 

★★★★★★★


फ़ख़्र अब तो
गाँव को भी
नहीं रहा
अपनी रुमानियत पर,
अब तो कौए भी
सवाल उठा रहे हैं
हर मोड़ पर
लड़खड़ाती इंसानियत पर।

★★★★★★★★

बाल दिवस
एक भी नहीं बिका सुबह से 
ले लो न एक तो ..
बहुत भूख लगी है 
ले लो न ......
कुछ खाऊँगा 
अच्छा एक दूध की थैली 
मुझे भी ले दो 
देखना है मुझे 
कैसा स्वाद है इसका ..

★★★★★★


उनके घर के अहाते में एक पेड़ थाजिस पर बया ने एक घोंसला बनाया था। सारे दिन वे पेड़ के नीचे बैठे रहते और बया के क्रिया-कलापों को एक नोट बुक में लिखते रहते थे। बया के क्रिया-कलापो और व्यवहार को उन्होंने एक शोध निबंध के रूप में प्रकाशित कराया। सन 1930 में छपा यह निबंध पक्षी विज्ञान में उनकी प्रसिद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। इसके बाद वे जगह-जगह जाकर पक्षियों के विषय में जानकारी प्राप्त करने लगे। इन जानकारियों के आधार पर उन्होने ‘द बुक ऑफ इंडियन बर्डस’ लिखी जो सन 1941 में प्रकाशित हुई।  यह आम आदमी के बीच एक लोकप्रिय पुस्तक के रूप में स्थापित हो गई और इस पुस्तक ने रिकॉर्ड बिक्री की। इस पुस्तक में पक्षियों के विषय में अनेक नई जानकारियां प्रस्तुत की गई थी। इसमें पक्षियों की उपस्थितिआवासप्रजनन आदतोंप्रवासन आदि शामिल हैं। इस पुस्तक से उन्हें एक पक्षी शास्त्री’ के रूप में पहचाना मिली। इसके बाद उन्होंने एक दूसरी पुस्तक हैण्डबुक ऑफ़ द बर्ड्स ऑफ़ इंडिया एण्ड पाकिस्तान’ भी लिखी। डॉ सालीम अली ने एक और पुस्तक द फाल ऑफ़ ए स्पैरो’ भी लिखीजिसमें उन्होंने अपने जीवन से जुड़ी कई घटनाओं का ज़िक्र किया है।

आज बस
कल मिलेगी दीदी फिर से
श्वेता


10 comments:

  1. शुभ संध्या सखी
    आपका आभार....
    बढ़िया रचनाएँ चुनी आपने
    पसंद आई
    सादर

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  2. शुभ संध्या श्वेता ,लाजवाब अंक । मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार ।

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  3. बहुत उम्दा चयन
    उत्कृष्ट रचनाएं
    शानदार प्रस्तुति
    मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए आभार

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  4. प्रिय श्वेता , सुंदर सार्थक भूमिका के साथ बढ़िया लिंक , बहुत अच्छे लगे | कवितायेँ तो अपनी जगह है ही , पर राष्ट्रिय पक्षी दिवस भी होता है ये आज जाना | सचमुच इसे ना जानने का मुझे बहुत खेद हुआ |इस पर अद्भुत आलेख के लिए सभी से प्रार्थना है ,वेइसे जरुर पढ़े जो भारत के मशहूर पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी डॉ. सलीम अली के बारे में है | इन्ही जन्मदिवस पर राष्ट्रीय पक्षी दिवस मनाया जाता है |सभी रचनाकारों को शुभकामनायें और आभार |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभारी हूँ |

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  5. यहां आकर अच्छा लगा। धन्यवाद!

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  6. खेल मत देख तू, अनाड़ी का,गेंद के इर्द-गिर्द, भागता हो,
    खेल में तो, वही है माहिर जो,ऊंची कुर्सी पे, सोता-जागता हो.

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  7. सुन्दर प्रस्तुति श्वेता दी.
    मुझे स्थान देने हेतु आभार
    सादर

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  8. बेहतरीन रचनाएं, बहुत सुंदर अंक।

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  9. बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति ।

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