Thursday, November 14, 2019

175..ख़ामोश लब हैं झुकी हैं पलकें, दिलों में उल्फ़त नई-नई है

सादर अभिवादन
''आज का चिन्तन''
स्व पर नियंत्रण आसान नहीं है. 
'जिसका स्वयं पर राज हो,जो लोभ, मोह और डर पर 
लगाम लगाए रखता है, वही वास्तविक में राजा है'

''आज विश्व मधुमेह दिवस है''
14 नवम्बर चाटर्रा, बेन्टिंग का जन्म दिन है जिन्होंने कानाडा के टोरन्टो शहर में बेन्ट के साथ मिलकर सन 1921 में इन्सुलिन की खोज की थी। इतिहास की इस महान खोज को अक्षुण रखने के लिए इन्टरनेशनल डायबिटीज फेडेरेशन (आईडीएफ) द्वारा 14 नवम्बर को पिछले दो दशको से विश्व डायबिटीज दिवस हर साल मनाया जाता है। यह दिन डायबिटीज की खतरनाक दस्तक को लोगों को समझाती है। हर साल एक नया थीम दिया जाता है।
..इस वर्ष का थीम..
यदि हम अपने दिनचर्या को नियमित रखेंगे और गरीबों के आहार पर डाका नहीं डालेंगे तो इस रोग से काफी हद तक दूर रह सकते हैं।

चलें आज की रचनाओं की ओर..

लिखें तो क्या लिखें
हँसी लिखें, खुशी लिखें
या कि लिखें दर्द?
या वो लिखें जो आता है नज़र?
लेकिन, जो नज़र आता है उसे 
लिखा भी जा सकता है क्या?


जो उजाला
दिन ढले
बेशुमार तारों
और चंद्रमा
को समेटता,
हज़ारों दियों की
टिमटिमाती
लौ बन कर
जगमगाया ।


छैनी-हथौड़े से
ठोक-पीटकर
कविता कभी बनते
हुए देखी है तुमने?

कुम्हार के गीले हाथों से
फिसलते-मसलते
माटी को कभी कविता
बनते देखा है तुमने?


जिंदगी की धूप में
दुखों के अंधकार में
देखा है मैंने अक्सर
अपनों को मुंह छिपाते।
पहनकर पराएपन का मास्क
चुरा कर नजरें बचते-बचाते
पल्ला झाड़ कर अक्सर
देखा है मैंने उन्हें दूर जाते।


बाल दिवस के अवसर पर 
काम   बड़ा न  छोटा कोई
काम तो बस काम है 
काम को ऐसे न टालो
जीवन में  इसे उतार लो


ख़ामोश लब हैं झुकी हैं पलकें, 
दिलों में उल्फ़त नई-नई है, 
अभी तक़ल्लुफ़ है गुफ़्तगू में, 
अभी मोहब्बत नई-नई है। 

अभी न आएँगी नींद न तुमको, 
अभी न हमको सुकूँ मिलेगा
अभी तो धड़केगा दिल ज़्यादा, 
अभी मुहब्बत नई नई है।
जरूर सुने आनन्द आएगा
सच में..

..
आज समय का भी ख्याल नहीं रहा
आदेश दीजिए
सादर


7 comments:

  1. बहुत सार्थक भूमिका और सुंदर संकलन।

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  2. शानदार प्रस्तुति...
    शुभ संध्या..
    सादर...

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  3.  स्वयं पर नियंत्रण , मानव जीवन का सबसे कठिन होमवर्क है।

    एक जातक कथा है-
    एक ज्ञानी तोते ने सभी पक्षियों को रटा दिया, ‘बहेलिया आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, ललचाना मत, पकड़े जाओगे...!’ जब बहेलिये को जंगल में हर तरफ से यह बात सुनायी दी तो वो बहुत मायूस हुआ. लगा, अब रोज़ी-रोटी कैसे चलेगी? फिर सोचा, एक कोशिश करके देखता हूँ. जाल बिछाया. दाना डाला. इन्तज़ार करने लगा. थोड़ी ही देर में पक्षियों का एक झुंड यही कलरव करता उधर आया कि ‘बहेलिया आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, ललचाना मत, पकड़े जाओगे...!’ सारे पंछी दानों पर टूट पड़े. बहेलिया की तो खुशी का ठिकाना न था! उसे कहीं ज़्यादा परिन्दे मिल गये और वो भी काफ़ी कम वक़्त में. ताज्जुब की बात ये भी थी कि जाल में फँसे पक्षी अब भी रट रहे थे, ‘बहेलिया आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, ललचाना मत, पकड़े जाओगे...!’

    बस इसी पर चिंतन कर रहा हूँ , आपकी सशक्त भूमिका को पढ़ कर।

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  4. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीया दीदी🙏🌷🌷🙏

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  5. सुप्रभात
    उम्दा रचना संग्रह|मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

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  6. लाज़वाब रचना संग्रह 👌👌

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  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक,सभी रचनाकारों को बधाई।

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