Sunday, November 24, 2019

185...जब कुछ हो ही नहीं रहा है तो काहे कुछ लिखना कुछ नहीं लिखो खुश रहो

सादर अभिवादन
उथल-पुथल हो गया
होश आ गया सभी को
जान आ गई पैरों में
कल तक मान-मनौवल खोजने वाले
आज मान-मनौवल कर रहे हैं
करने दीजिए...हमें क्या..
हम को तो आज की रचनाएँ देखनी है

इंद्रधनुष के रंग यह सारे ..अनीता लागुरी
इंद्रधनुष के रंग ये सारे,
ये स्याह सफेदी मुझे भाती नहीं,
तुझे भी हक है नारंगी रंग ओढ़ने की
किसी की मौत तेरी किस्मत नहीं
लगा दूं बालों में यह गुलाबी सा पुष्प कहीं,

गिलहरी और पेड़ ....ओंकार जी
Squirrel, Young, Young Animal, Mammal
दौड़ती-भागती रहती है
ऊंचे पेड़ की शाखों पर,
पेड़ को गुदगुदी होती है,


जीवन की साँझ ....अनुराधा चौहान
भोर बोझिल-सी हो गई।
महकती थी सुमन से बगिया,
 बंजर-सी वो हो गई।

प्रेम के अहसास जो छिटके,
ओस की तरह गुम हुए।
अंतिम पथ पे आज अकेले,
बाट जोहते रह गए।

जिन रातों के हिस्से कोई चाँद नहीं होता होगा,
कैसे कटती होंगीं उनकी अकथ गुलामी की रस्में?

सच कहते हैं जीवन केवल
परिधानों का सौदा है,
जनम-मरण का घेरा यह तो
बेबस एक घरौंदा है।
जिन साँसों के हिस्से पालनहार नहीं होता होगा,
कैसे कटती होंगीं उनकी अकथ गुलामी की रस्में?

मरना कौन चाहता है? 
किसे अच्छा लगता है 
जीना, बनकर एक लाश। 
करने से पहले आत्महत्या, 
करना पड़ता है संधर्ष, 
खुद से। 
पर पाने से पहले 
रेशमी दुनिया, खौलते पानी में डाल देते है 

सारे शरीफ
कुछ
करने कहने लिखने
वाले  जानते हैं
‘उलूक’ बेशर्म है
कुछ नहीं कहता है
उसे जरा सा भी शर्म नहीं है

जरूरत
किस बात की
कहाँ पर है

भगवन
ध्यान मत दो
कुछ नहीं करो
कुछ नहीं लिखो

कुछ नहीं को
मिलता है सम्मान
कुछ तो महसूस करो
.....
बाकी है बहुत कुछ
कुछ कल के लिए छोड़ देते हैं
सादर

5 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार यशोदा जी।

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  2. बढ़िया...
    शानदार अंक..
    सादर...

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  3. सुंदर प्रस्तुति. मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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