Friday, April 9, 2021

686 ..कहीं कोई हलचल नहीं है और न ही कोई विचलन है

सादर अभिवादन
आज रचनाएँ कम है पर
आनन्दित करने वाली है
..........
 गहरे में कहीं इतना नीरव सन्नाटा है कि आती-जाती हुई साँसें विराम बिंदु पर टकराते हुए शोर कर रही है । हृदय का अनियंत्रित स्पंदन चौंका रहा है । शिराओं में रक्त-प्रवाह सर्प सदृश है । आँखें देख रही है पर पुतलियां बिंब विहीन हैं । स्पर्श संवेदनशून्य है । गंध अपने ही गुण से विमुख है । कहीं कोई हलचल नहीं है और न ही कोई विचलन है ।


किसलय की आहट है
रँग की फगुनाहट है
प्रकृति की रचना का
हो रहा अब स्वागत है

मन मयूर थिरक उठा
आम भी बौराया है
चिड़ियों ने चहक चहक
राग कोई गाया है


वह अपने तीनों पैरों से दौडने, कूदने, सायकिल चलाने, स्केटिंग करने के साथ-साथ बाल पर बेहतरीन ‘किक’ लगाने में पारांगत हो गया था। ऐसे ही उसके एक शो को देख एक नामी फुटबाल क्लब से उसे खेलने की पेशकश की गयी। फ्रैंक ने मौके को हाथ से नहीं जाने दिया। देखते-देखते वह सबसे लोकप्रिय खिलाडी बन गया। खेल के दौरान जब वह अपने दोनों पैरों को स्थिर कर तीसरे पैर से किक लगा, बाल को खिलाडियों के सर के उपर से दूर पहुंचा देता तो दर्शक विस्मित हो खुशी से तालियां और सीटियां बजाने लगते।  उसे अपने तीसरे पैर से किसी भी तरह की अड़चन नहीं थी। सिर्फ कपडे सिलवाते समय विशेष नाप की जरूरत पडती थी और रही जूतों की बात तो उसने उसका भी बेहतरीन उपाय खोज लिया था , वह दो जोडी जुते खरीदता और चौथे फालतू जूते को किसी ऐसे इंसान को भेंट कर देता जिसका एक ही पैर हो................!!


आग लगी, भगदड़ मची, शोर हुआ
सब एक-दूसरे को धक्का दे भागने लगे आयें-बांयें
सारे उस धधकती आग के डर से चीखने-पुकारने लगे
कुछ तो आनन-फानन में खिड़की से ही कूदने लगे
तो कुछ उस जानलेवा आग की लपटों में झुलसने लगे
...
बस
सादर


3 comments:

  1. आनन्दित करने वाली रचनाएं अनमनी संध्या के मौन को मुखर कर रही है । सुन्दर चयन एवं प्रस्तुतिकरण के लिए हार्दिक आभार और शुभकामनाएँ ।

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  2. रचना साझा करने के लिए धन्यवाद!!!

    आभार

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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