सांध्य दैनिक के
शनिवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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बढ़ने लगी आसमां की तन्हाईयाँ
फिजांं में खामोशियों का रंग चढ़ा
बेआवाज़ लौटने लगे परिंदें भी
थके सूरज की किरणें कहने लगी
अब शाम होने को है।
फिजांं में खामोशियों का रंग चढ़ा
बेआवाज़ लौटने लगे परिंदें भी
थके सूरज की किरणें कहने लगी
अब शाम होने को है।
-श्वेता
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आइये रचनाएँ पढ़ते हैं-
विभा दी की लघुकथाएं
दैनिक जीवन के झकझोरते अनुभव होते हैं-
पश्चाताप
दैनिक जीवन के झकझोरते अनुभव होते हैं-
पश्चाताप
"मेरे हठ का फल निकला कि हमारी बेटी हमें छोड़ गयी और बेटा को हम मरघट में छोड़ कर आ रहे ड्रग्स की वजह से..। संयुक्त परिवार के चौके से आजादी लेकर किट्टी पार्टी और कुत्तों को पालने का शौक पूरा करना था।"
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पुरूषोत्तम सर की रचनाएँ
भावनाओं का खूबसूरत ताना-बाना
बुनकर पाठकों के अंतस में उतर जाती हैं-
भावनाओं का खूबसूरत ताना-बाना
बुनकर पाठकों के अंतस में उतर जाती हैं-
झंकृत, हो जाएं कोई पल,
तो इक गीत सुन लूँ, वो पल ही चुन लूँ,
मैं, अनुरागी, इक वीतरागी,
बिखरुं, मैं कब तक!
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शंकुतला जी की रचनाएँ
मानव मन की महीन भाषा का अनुवाद
बखूबी करती हैं-
मेरा कमरा जानता है.....
कि मैंने न जाने कितनी सारी
यादों को संजो के रखा है
न जाने कितनी बातें सांझा की है
मेरा कमरा जानता है..…
मेरे बचपन की कितनी खट्टी मीठी बातें
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जेन्नी शबनम जी की लेखनी के सम्मान में
शब्द नहीं सूझ रहे,इनकी लिखी परिपक्व रचनाएँ पाठकों को सहज आकर्षित
करती हैं-
पीड़ा धीरे-धीरे पिघल, आँसुओं में ढलती है
वक़्त की पाबन्दी है, ज़िन्दगी भी ढलती है।
अजब व्यथा है, सुबह और शाम मुझमें नहीं
बस एक रात ही तो है, जो मुझमें जगती है।
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ज्योति जी की प्रतिभा संपन्न लेखनी
से कम शब्दों में संपूर्ण मनोभाव
उकेरने की कला हायकु पढ़िए-
रहे अछूता
विकट विकारों से
भाव-भवन ।
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आज के लिए इतना ही
-श्वेता
शुभ संध्या...
ReplyDeleteवो पल ही चुन लूँ .... बेहद खुशी होती है जब किसीवरचना के अंश को किसी प्रस्तुति के शीर्षक हेतु चुना जाता है।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
समस्त रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।
बढ़ने लगी आसमां की तन्हाईयाँ
ReplyDeleteफिजांं में खामोशियों का रंग चढ़ा
बेआवाज़ लौटने लगे परिंदें भी अब
थके सूरज की किरणें कहने लगी
अब शाम होने को है।
-श्वेता
👌👌👌👌
छुटकी छुटकी छुटकी
ReplyDeleteसस्नेहाशीष और असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका..
श्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद
बेहतरीन अंक..
ReplyDeleteपढूँगी रात में
आभार..
जी शुक्रिया आदरणीया श्वेता जी
ReplyDeleteमेरी कविता को स्थान देने के लिए बहुत आभार
बेहतरीन संकलन सभी रचनाकारों को बहुत बधाई
बेहद सुन्दर, मन को छू लेने वाली रचनाएँ ! सभी को बधाई ।
ReplyDeleteमेरे सृजन को आपका स्नेह मिला , हार्दिक धन्यवाद।
बहुत खूबसूरत लिंक्स से सजी सुंदर चर्चा ।
ReplyDeleteउभर आओ न तो सारा आकाश मिले। मेरा कमरा जनता है कि ज़िन्दगी भी ढलती है अब पश्चाताप हो तो हो ।
सारे लिंक्स पढ़ने के बाद ही बता रही हूँ कि बहुत सुंदर रचनाएँ पढ़ीं ।