नाजुक वक्त है
ना रखना किसी से बैर
हो सके तो हाथ जोड़कर
ईश्वर से मांगना
हर किसी की खैर..
सादर अभिवादन..
कोरना काल का द्वितीय चरण..
बेवकूफ और मंदबुद्धि लोग ही
इस दूसरे चरण के प्रसार के साधन हैं
आज की रचनाएं...
तो शुरुआत अतीत की एक झलक से
दाँव पर प्राणों को रख कर ।
फेंकता रहता हूँ पासा ।
दूसरा पानी क्यों पीऊँ ।
स्वाति जल का मैं हूँ प्यासा ।
दाने चुगाओ कबूतरों को, या चीटियों
को कराओ मधु पान, अतीत के
पृष्ठ नहीं बदलते, वो सभी
बंद हैं दराज़ में, मुद्दतों
से बाक़ायदा, जो
कुछ लिखा
जा चुका
है उसे
समझ पाते नेक इंसानों को तो खोजते नहीं मूक मूर्तियों में मसीहा,
मानो 'पैलेडियम' को जाने बिन,बेशकीमती लगा हमें सदा ही हीरा।
हर दिन वेश्याओं की बस्ती में बच्चों को पढ़ाने जाना भूलता नहीं,
समझते रहें लाख उसे शहर वाले भले ही आदमी निहायत गिरा।
कबूतर आपस में बतिया रहे थे "अरे आज तो खूब दाना मिल गया, तूने सच ही कहा था मेरे भाई ! कि ये मनुष्य बड़े तमाशबीन होते हैं थोड़ा लड़ने का नाटक क्या किया कि इतना सारा दाना मिल गया" !....
"तो सही है न...... 'तमाशा देखो दाना फेंको'
समवेत स्वर में कहकर
सारे कबूतर खिलखिला कर हँसे और फड़फड़ाकर उड़ गये।
“पापा अब आपसे मैं जो दहेज में मांगू वो दोगे ?"
अशोक भाई भारी आवाज में -"हाँ बेटा", इतना ही बोल सके.
"तो पापा मुझे वचन दो
आज के बाद सिगरेट के हाथ नही लगाओगे....
तबांकू, पान-मसाले का व्यसन आज से छोड दोगे.
आज बस
सादर
आज बस
सादर
अत्यंत सुंदर व भावपूर्ण प्रस्तुति आज की। हर एक रचना बहुत सुंदर थी। संस्कार आज मेरी प्रिय रचना थी। बहुत ही सुंदर प्यारी सी लघुकथा कि कैसे एक बेटी ने अपने पिता की भलाई के लिए कदम उठाए। सोनल एक सशक्त स्त्री का प्रतीक है।
ReplyDeleteहृदय से आभार इस सुंदर प्रस्तुति के लिए व आप सबों को प्रणाम ।
उम्दा लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद आपका।
आभार..
ReplyDeleteसादर..
सभी लिंक्स बढ़िया रहे ।
ReplyDeleteशानदार लिंक
ReplyDeleteसुंदर चयन !
ReplyDelete