सादर अभिवादन
इश्क के बाज़ार में बिक गए,
वफ़ा की दुकान में टिक गए।
वो निकला दुश्मन हमारा,
उनसे दोस्ती कर मिट गए।
जवानी पे अपनी गुरुर था बड़ा,
आया बुढ़ापा तो झुक गए।
उपरोक्त पंक्तियां किसने लिखी है
आपसे ही पूछ रही हूँ...
अब रचनाएँ......
शब्द-शब्द, हों कंपित,
हों, मुक्त-आकाश, रक्त-रंजित,
वो मन के, खंड-खंड, भू-खंड लिखे,
ढ़हती सी, हिमखंड लिखे,
रक्त बहे, शब्द हँसे!
इसको खता कहें के कहें इक नई अदा,
हुस्ने-बहार रोज़ लुटाएँ … मुझे न दें.
सुख चैन से कटें जो कटें जिंदगी के दिन,
लम्बी हो ज़िन्दगी ये दुआएँ … मुझे न दें.
तुम ठहरो तो तुम्हें ये प्रकृति समझाएगी कि
उसके कण-कण में प्रेम है, प्रेम की धारा है
और प्रेम का अनुरोध निहित है....।
यह सारी कायनात
उस दिन चलेगी
हमारे इशारे पर भी
जब हमारी रजा
उस मालिक की रजा से एक हो जाएगी
ये ख़ुशियों का खेल, भावनाओं का अदल -
बदल, जो बंद है उनकी सोच में कहीं,
वो अक्सर चाहते हैं अन्तःस्थल
से बाहर छलकना, अंदर का
रिले रेस, हर हाल में
चाहता है, तुम
तक
पहुंचना।
.....
आज बस
सादर
आज बस
सादर
शुभ संध्या..
ReplyDeleteआज कुछ गड़बड़ हुआ है
होने दीजिए..
सादर..
इस कठिन दौर में सब सुरक्षित व स्वस्थ रहें, यही कामना है
ReplyDeleteकठिन तो दौर ही चल रहा है, हर दिन एक उम्मीद है जो पूरा दिन जीने का हौंसला दे जाती है। मुझे स्थान देने के लिए आपका आभारी हूं यशोदा जी।
ReplyDeleteघूम आये सब लिंक्स पर । अच्छे लिंक्स ।
ReplyDeleteआभार दीदी..
ReplyDeleteसादर नमन..
शुभ संध्या,,,
ReplyDeleteपटल को नमन।।।।।
बहुत खूबसूरत रचना संग्रह
ReplyDeleteभूमिका में लिखी पंक्तियाँ आपने ही लिखी होंगी, सुंदर हैं, लिंक्स भी बेहतरीन हैं, आभार !
ReplyDeleteसारी रचनायें बहुत खूबसूरत हैं
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