मेरे मैया की ऊँची अंटारी,मैं तो धीरे धीरे चढ़कर आई
सास ससुर को साथ में लाई,अपने माता पिता भी लाई
मैं तो....
अपनी मैया के लिए चुनरी भी लाई,चुनरी मैं लाई
मैं तो भोजन भी लाई,मैं तो दीप जलाने आई,
मैं तो धीरे धीरे....
भरी रहें मेरे देश की नदियाँ, देश की नदियाँ,
औ ताल तलरियाँ
मैं तो बरसात मांगन आई, मैं तो धीरे धीरे ....
फूलों फलों से लदीं हों बगियाँ,
बागों में उड़ती हों, तितली औ चिड़ियाँ
मैं तो हरियाली मांगन आई,मैं तो धीरे धीरे ....
देश की मेरे भरी हों भंडारे, चलते हो लंगर
और खाएं कतारें,
मैं तो अन धन मांगन आई मैं तो धीरे धोरे.......
मेरे देश का आँगन भरा हो, सद्भाव शिक्षा का दीप जला हो
मैं तो घर बार मांगन आई, मैं तो धीरे धीरे...
मेरे मैया की ऊँची अटारी, मैं तो धीरे धीरे चढ़ कर आई ।।
आदरणीय दीदी,मेरे गीत को इतना सम्मान देने के लिए आपका जितना आभार करूं कम है,आपके स्नेह का हृदय तल से आदर और नमन करती हु,सादर शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteआदरणीया जिज्ञासा जी की रचनाएँ एक वृहत्तर आयाम लिए होती है, जिसे पढना खुद में एक अनुभव जैसा होता है।
ReplyDeleteवैसी एक अपनी रचना से अवगत कराने हेतु पटल का आभार।
आदरणीया जिज्ञासा जी हेतु समस्त शुभकामनाएँ
आप लिखते रहें। माँ सरस्वती की कृपा आप पर सदैव बनी रहे।
जय माता की
ReplyDeleteसादर..
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना सजी है आज मंच पर। एक कवि मन समस्त चराचर के लिए सद्भावनाओं से भरा होता है। सबके सुख की कामना उसका प्रमुख ध्येय होता है। प्रिय जिज्ञासा जी ने बहुत सुंदर कामना रखी है जगत जननी जगदम्बा माँ के समक्ष। भावों से भरे श्रद्धा पूर्ण सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं जिज्ञासा जी को। और मंच को आभार🙏🙏 💐💐
ReplyDeleteअच्छा होता जो ब्लॉग लिंक भी साथ दिया जाए आदरणीय दीदी। ब्लॉग को नये पाठक मिलते हैं। सादर आभार🙏🙏 🌹❤
ReplyDeleteसुन्दर गीत
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