Monday, April 19, 2021

696....चालीस घंटे...ज्योति खरे

सांध्य दैनिक के
सोमवारीय अंक में आप सभी का 
स्नेहिल अभिवादन

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आज सिर्फ़ एक रचना पढ़िए

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अपने होने 
और अपने जीने की
उम्मीद को
छाती में पकड़े पिता
ऑक्सीजन न मिल पाने की वजह से
अस्पताल में अकेले लेटे 
कराह रहे हैं
मेरे और पिता के बीच हुए सांत्वना भरे संवाद
धीरे धीरे गूंगे होते जा रहे हैं
पहली बार आभास हुआ
कि,मेरे भीतर का बच्चा
आदमी बन रहा है
मैं चीखता रहा उनके पास 
रहने के लिए
लेकिन विवशताओं ने 
मेरी चीख को अनसुना कर
बाहर ढकेल दिया 
मैं पिता का 
परिचय पत्र,राशनकार्ड,आधारकार्ड 
और उनका चश्मा पकड़े
बाहर पड़ी 
सरकारी टूटी बेंच पर बैठा 
देखता रहा उन लोगों को 
जो मेरे पिता की तरह
एम्बुलेंस से उतारकर 
अस्पताल के अंदर ले जाए जा रहें हैं
पूरी रात बेंच पर बैठा सोचता रहा
पास आती मृत्यु को देखकर
फ्लास्क में डली मछलियों की तरह
फड़फड़ा रहे होंगे पिता
इस कशमकश में 
बहुत कुछ मथ रहा होगा
उनके अंदर
और टूटकर बिखर रहे होंगे
भविष्य के सपने
सुबह
बरामदे में पड़ी 
लाशों को देखकर
पूरा शरीर कांपने लगा
मर्मान्तक पीड़ाओं से भरी आवाज़ें
अस्पताल की दीवारों पर 
सर पटकने लगीं
मेरे हिस्से के आसमान से 
सूरज टूटकर नीचे गिर पड़ा
लाशें शमशान ले जाने के लिए
एम्बुलेंस में डाली जाने लगी
इनमें मेरे पिता भी हैं
सत्ताईस नम्बर का टोकन लिए 
शमशान घाट में लगी लंबी कतार में खड़ा हूं
पिता की राख को घर ले जाने के लिए
एक बार मैंने पिता से कहा था
आपने मुझे अपने कंधे पर बैठाकर
दुनियां दिखायी
आसमान छूना सिखाया
एक दिन आपको भी
अपने कंधे पर बैठाऊंगा
उन्होंने हंसेते हुए कहा था
पिता कभी पुत्र के कंधे पर नहीं बैठते
वे हाँथ रखकर 
विश्वास पैदा करते हैं
कि, पुत्र अपने हिस्से का बोझ
खुद उठा सके
पिता सही कहते थे
मैं उनको अपने कंधे पर नहीं बैठा सका
पिता कोरोना से नहीं मरे
उन्हें अव्यवस्थाओं ने उम्र से पहले ही मार डाला 
चालीस घंटे बाद
उनको लेकर घर जा रहा हूँ
मां
थैले में रखे पिता को देखकर
पछाड़ खाकर देहरी में ही गिर जायेंगी
पिता अब कभी घर के अंदर नहीं  आयेंगे----

14 comments:

  1. आदरनिया मैम, हमारे देश की अव्यवस्था के दुखद सत्य को दर्शाता हुआ एक मार्मिक चित्रण जिसने आँखें नं कर दीं । यह एक दुखद सत्य है जो कोरोना काल से पहले भी हमारे देश में था और अभी भी है। कितनी सरकारें आईं -गईं पर सब ने केवल अपना पेट भरा और भ्रष्टाचार फैलाया, जनता की जरूरतों का तो विचार किया ही नहीं गया है। ऐसे में इस तरह की घटनाएं होतीं रहतीं हैं और आम आदमी अपना जीवन इसिस पीड़ा में बीतता रहता है। काश यह रचना जागृति ला पाए। हार्दिक आभार इस रचना को हमारे साथ साझा करने के लिए व आप सबों को प्रणाम।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका

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  2. आशंकाओं और मायूसियों से भरे इस संक्रमण काल में कोरोना ने चहूँ ओर मौत की दहशत है! अनेक अभागे ऐसे होंगे जिन्होंने इस रचना का ये मार्मिक सत्य जीया होगा! एक अभागे बेटे के पिता की आक्समिक मौत का मर्मांतंक शब्द चित्र अनायास आँखें भिगो देता है! ज्योति सर इस तरह के विषय बडी सहजता से रचना में ढालने में माहिर है. पिता का साया अचानक उठ जाता है तो इंसान खुद को बहुत बड़ा और जिम्मेवार मानने लग जाता है! सच है पिता के साथ अबोध बचपन की विदाई हो जाती है ! निशब्द करती रचना के लिए क्या लिखूँ? ये पंक्तियाँ तोे हृदय विदीर्न करती करती हैं------
    थैले में रखे पिता को देखकर
    पछाड़ खाकर देहरी में ही गिर जायेंगी
    पिता अब कभी घर के अंदर नहीं आयेंगे--
    कितना दर्द और विवशता है इन पंक्तियों में.


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    1. रेणु जी
      बहुत बहुत आभार आपका
      सादर

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  3. बहुत बहुत आभार प्रिय श्वेता, ये भावपूर्ण रचना साझा करने के लिए 🌹💕🙏❤❤

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  4. बेहतरीन रचना। आदरणीय ज्योति खरे जी, जो कि जीवन्तताओं व भावनाओं को अर्थ देने में माहिर हैं, ने इस रचना में आज की ज्वलंत समस्या को भी एक अर्थ प्रदान करने की सफल कोशिश की है।
    साधुवाद। ।।। मंच को नमन।।।।

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    1. बहुत आभार आपका भाई जी

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  5. श्वेता बहुत बहुत आभार आपका
    मेरी इस रचना को साझा करने और मान देने का

    दरअसल जो देख रहें हैं,जो महसूस कर रहें हैं,वह बहुत मर्मान्तक है,इस पीड़ा से जो गुजर रहा है उसका दिल ही जानता होगा कि,कितने दुख उसकी हथेली पर आंसुओं के साथ टपके होंगे.
    बस इसी विचार और दुख को कविता के रूप में लिख दिया
    लेकिन अपनी कविता को पढ़कर में भी रो दिया

    सादर

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  6. पहले ही पढ़ चुकी हूँ आपकी ये रचना .. मन व्यथित हो गया था ... आँखों के सामने जैसे चलचित्र ही खींच दिया आपने ... मार्मिक प्रस्तुति .

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  7. इतना लंबा मौन क्यो मुखरित मौन वालो? मंच पर इतनी लंबी चुप्पी असह्य हो रही है🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  8. सांध्य दैनिक पर छाया सूनापन बहुत खल रहा है। शाम के आनंद की याद आ रही है।

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  9. प्रिय श्वेता जी, आपने बहुत ही मार्मिक, और यथार्थपूर्ण रचना साझा की है,जिसके लिए ज्योति जी और आप दोनों का बहुत आभार ।

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  10. आज के हालातों का एक कटु सत्य ,, सब कह दिया
    मर्मस्पर्शी प्रस्तुति

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  11. ईश्वर शांति दे उन दिवंगत आत्माओं को और शक्ति दे उनके परिजनों को...वो इस गहरे शोक से उभर सकें

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