सांध्य दैनिक के शनिवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
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शुक्र है ज़ुबां परिदों की अबूझ पहली है
वरना उनका भी आसमां बाँट आते हम,
अगर उनकी दुनिया में दख़ल होता हमारा
जाति धर्म की ईंटों से सरहद पाट आते हम।
वरना उनका भी आसमां बाँट आते हम,
अगर उनकी दुनिया में दख़ल होता हमारा
जाति धर्म की ईंटों से सरहद पाट आते हम।
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आज रचनाओं की विवेचना नहीं है सिर्फ़ रचनाएँ हैं-
आज के लिए इतना ही
कल मिलिए यशोदा दी से।
उव्वाहहहह..
ReplyDeleteशानदार अंक..
सारी रचनाएं पढ़ी..
कभी-कभी ऐसा अंक भी
अचरज में डाल देता है
पाठक सोचते हुए लिंक छुए बगैर
नहीं रह सकता..
आभार..
सादर ..
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteमेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी।