सादर वन्दे..
कह दिया सो कह दिया
कि आज मैं आऊँगी सो आऊँगी
अभी कुछ दिन पहले संगीता दीदी ने
प्रतिक्रिया में लिक्खा था
कुछ रचनाकार टिप्पणी का डब्बा ही नहीं रखते
वे टिप्पणियों को भूखे नही होते
वे सिर्फ और सिर्फ अपने आप को शान्त रखनें के लिए लिखते हैं
अब रचनाएँ देखें ...
मैदानों में दौड़ लगाते,
खेलते-कूदते,पढ़ते-लिखते
अपना मुकद्दर गढते बच्चे ।
हँसती-खिलखिलाती,
सायकिल की घंटी बजाती
स्कूल जाती बच्चियाँ ।
मिट्टी के कुल्हड़ में धुआँती
चाय की आरामदेह चुस्कियां ।
थाली में परोसी चैन देती
भाप छोड़ती पेट भर खिचड़ी ।
श्रेष्ठ जनम मानव का मिलता,बुद्धि सदा सत्मार्ग हो।
पांच इंद्रियों को जो साधे, नींव पड़े व्यवहार की।।
ज्ञानी जन अभिमान करें जब,बढ़ा रहें संताप वो
छोड़ अहम को लक्ष्य रखें ये,सकल जगत उद्धार की।
पर्वतारोही नहीं पहुँच पाते हैं उस
अलौकिक बिंदु पर, फिर भी
जीवन यात्रा नहीं रूकती,
नदी, अरण्य, प्रस्तर -
खंड, झूलते हुए
सेतु बंध,
सभी
मधु रसा वो कोकिला भी
गीत मधुरिम गा रही।
वात ने झुक कान कलि के
जो सुनी बातें कही।
स्वर्ण सा सूरज जगा है
धार आभूषण खरे।।
...
आज बस इतना ही
दो बज रहे हैं
बस
सादर
आज बस इतना ही
दो बज रहे हैं
बस
सादर
बहुत प्यारे से लिंक सभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
ReplyDeleteमोहक अंक के लिए बधाई।
सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाए।
मेरी रचना को मुखरित मौन पर रखने के लिए हृदय तल से आभार।
उव्वाहहहह..
ReplyDeleteसुन्दर रचनाएँ..
वादे की पक्की मेरी दिबू..
आभार..
सभी रचनाएं बहुत सुन्दर भावों से सजी अति उत्तम।
ReplyDeleteशुभ संध्या। ।।।
ReplyDeleteबेहतरीन लिंक्स का चयन। सुन्दर प्रस्तुति। ।।।
प्रिय दिव्या ,
ReplyDeleteसभी लिंक्स एक से बढ़ कर एक । श्रमसाध्य चर्चा लगाने का शुक्रिया ।
रही बात कि विभाजी की चर्चा पर मैंने टिप्पणी करी थी कि कुछ ब्लॉग्स पर टिप्पणी कहाँ करे समझ नहीं आया ।
मेरा कहने का तात्पर्य ये कतई नहीं था कि उन्होंने टिप्पणी के लिए ओपन नहीं किया था । एक ब्लॉग पर कमेंट के लिए जगह दिख भी रही थी लेकिन क्लिक करने पर कोई और साइट खुल रही थी । आपके कहे अनुसार ऐसा लग रहा है कि जो रचनाकार टिप्पणी का डिब्बा खोले हुए हैं वो टिप्पणियों के भूखे हैं । ये कहना तो सही नहीं है न ?
बहुत लोग शायद केवल स्वान्तः सुखाय के लिए रचना करते हों लेकिन यदि कोई पढ़ कर प्रशंसा या कुछ कमी बताए तो लिखने वाले का उत्साह बढ़ता है ।
यदि लिखा हुआ औरों द्वारा पढ़ा न जाये या पढ़ा जाए और उस पर अपने विचार न दे पाएँ तो उस लिखे का महत्त्व केवल लिखने वाले के लिए ही रह जाता है । खैर ये अपनी अपनी सोच है ।
तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस स्वान्तः सुखाय के लिए ही रची थी । हो सकता है जिन लोगों ने कमेंट बॉक्स न खोल रखा हो वो अपने को उसी श्रेणी में समझते हैं ।
बहरहाल मेरे ब्लॉग पर टिप्पणियों का डिब्बा खुला है आप सब भर भर कर टिप्पणियाँ दीजिए फिर भी कम से कम मेरी तो भूख शांत न होने वाली । एक एक टिप्पणी मेरे लिए बहुमूल्य है ।
आभार ।
जी दीदी , आपके विचारों से सहमत हूँ | प्रतिक्रियाओं से चिंतन को विस्तार मिलता है और रोचक बात ये है कि एक रचना पर विभिन्न लोगों का दृष्टिकोण देखकर कई बार दंग होना पड़ता है | प्रिय दिव्या ने बहुत बढिया लिंक लगाये हैं | बहुत प्यार और शुभकामनाएं दिव्या के लिए साथ में सभी रचनाकारों को नमन |
Deleteआभारी हूँ, दिव्या जी...इस पन्ने पर जगह देने के लिए. कम हैं, पर जी लगाने को बहुत हैं...चयनित रचनाएं. सभी रचनाकारों को सादर नमस्कार. टिप्पणी करने वालों का आभार.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना संकलन
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