सादर वन्दे
उत्सव सारे मना लिए गए
कैसे भी हो मने न
इस बार की छठ ने समझा दिया
तालाब-नदी आवश्यक नहीं
घर ही के किसी कोई बड़े बरतन में भी
अर्घ्य दिया जा सकता है
कहावत चरितार्थ हो गई
मन चंगा तो कठौती में गंगा
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रचनाएँ..
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रचनाएँ..
स्वामी-दास ...अनीता जी
कोई स्वामी है कोई दास
है अपनी-अपनी फितरत की बात
किसका ? यह है वक्त का तकाजा
स्वामी माया का चैन की नींद सोता
क्षीर सागर में भी
सर्पों की शैया पर !
कोई किसी को बांध के नहीं रखता
बल्कि अपने साथ बांध के ले जाता है,
देह पड़ी रहती है पृथ्वी पर
और प्राण करता है नभ पथ का विचरण,
निःश्वास की गहराई में डूब जाते हैं,
वास्तव में फेंगशुई के लोकप्रिय उत्पादों से
सुख-समृद्धि नहीं होती है!
फेंगशुई अंधविश्वास ही है!!
फेंगशुई, अपना माल भारतीय बाजार में
बेचने की चीन की एक साजिश है!!!
मानवता लाचार अब,
आया कैसा काल।
रिश्तों में धोखा मिला,
फैला भ्रम का जाल।।
धोखा अपनों से मिला ,
कैसे हो विश्वास।
फरेबियों से जग भरा,
टूट गयी सब आस ।।
समय और यौवन लौटता नहीं,
एक बार बीत जाने के बाद ।
वक़्त पर क़ीमत नहीं की जिसने इनकी,
कभी हो नहीं पाता वो आबाद ।।
अबे तू
किसलिये
फटे में
टाँग अड़ा कर
इतना
खिलखिलाता है
सार ये है
कि
ठंड रखना
सबसे अच्छा
हथियार
माना जाता है
कुछ दिन
चला कर
देख ले
कितना
मजा आता है ।
....
बस..
सादर
बस..
सादर
बेहतरीन अंक..
ReplyDeleteआभार..
सादर
सुंदर चयन और सराहनीय प्रस्तुति...।मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदयतल से आपका आभार व्यक्त करती हूँ..।
ReplyDeleteआभार दिव्या जी।
ReplyDeleteमेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिव्या।
ReplyDeleteमुखरित मौन सुन्दर संकलन व प्रस्तुति लिए संध्या को अर्थपूर्ण बनाता है, सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं, मुझे जगह देने हेतु आभार - - नमन सह।
ReplyDeleteवाकई छठ पूजा का कोरोना काल में भी उत्साह पूर्वक आयोजन देखकर लगता है, जहाँ चाह वहां राह ! उत्तम रचनाओं का संकलन, आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
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