Monday, November 16, 2020

541...ये तो होना ही था, गई भैंस पानी में

शुभ संध्या...
आज से व्रत प्रारम्भ


 
सूर्योपासना
माता व्रतियों को साहस प्रदान करे
...

आज दूज हैं
सो विलम्ब हुआ
रचनाएँ...

प्रारम्भ एक साहसिक कहानी से

''आप निसंकोच होकर बताइए...'' 
''चार साल पहले मेरे मामीजी अस्पताल में भरती थे। मैं रात को 8 बजे टिफिन देकर अस्पताल से लौट रही थी। रास्ते में एक सुनसान जगह पर मेरी स्कूटी ख़राब हो गई। मैं स्कूटी पकडकर जा रही थी। अचानक चार लड़कों ने मुझे घेर लिया। हालांकि मुझे जुडो-कराटे आते है लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि मैं अपना बचाव नहीं कर सकी और उन चारों ने मेरा सामुहिक बलात्कार करके सड़क किनारे फेंक दिया। जैसे कि मैं कोई इंसान हूं ही नहीं! 



या मुझको मेरी औकात बता दो
या मुझसे मेरे असूल छीन लो...
-अकेला
आ अब लौट चलें ......
छोड़ फेसबुक की झूठी रंगीन, फ़रेबी,दुनिया से......... 
अपने ब्लॉगर की आभासी दुनिया में ,...




निशा आज जैसे नख-शिख सजी है ,
खुशियों की मन में वंशी बजी है | 
हर ओर उत्सव , उमड़ती उमंगें ,
अब ये खुशी काश पल भर न जाये 




सुबह सुबह से
इसी बात को सुनकर 
दुखी हो चुकी
मेरे दिमाग की भैंस 
पानी में चली जाती है 

तब से भैंस के जाते ही 
सारी बात जड़ से खतम हो जाती है 

परेशान होने की जरूरत नहीं 
अगर आपके समझ में
'उलूक' की बात बिल्कुल भी नहीं आती है । 
......
अब बस
सादर


5 comments:

  1. आभार यशोदा जी। भाई दूज की मंगलकामनाएं।

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  2. मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,यशोदा दी।

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  3. व्वाहहहहहह..
    शानदार..
    सादर..

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  4. आप के स्नेह के लिए बहुत बहुत आभार। स्वस्थ रहें🙏

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