Sunday, November 15, 2020

540 ...बिल्कुल भी नहीं चाहती थी कि आज बाजार जाऊँ

सादर नमस्कार.. 
दीप पर्व संपन्न
लोगों का जेब हलका नहीं हुआ
फटाकों का खरीददारी में
कुछेक जगह छोड़कर फीकी ही रही दीपावली
आइए रचनाएँ देखें....

नदी के आगोश में ...डॉ.कविता भट्ट 'शैलपुत्री'


ढला बादल

नदी के आगोश में

हुआ पागल

लिये बाँहों में वह

प्रेमिका -सी सोई।


क्लोनिंग .....प्रतिभा सक्सेना


इधर क्लोनिंग के विषय में बहुत कुछ सुनने में आ रहा है .वनस्पतियाँ तो थीं ही अब,जीव-जन्तुओं पर भी प्रयोग हो रहे हैं और सफलता भी मिल रही है. क्लोनिंग की बात से मन में कुछ उत्सुकता और कुछ शंकायें उत्पन्न होने लगीं . 



दीप जलाओ आज दिवाली रे ..सेहर


कोरोना के दिन,महीने निकल गए 

इनके साथ त्यौहार जन्मदिन भी 

संभलते बचते-बचाते निकल गए 

सुना छह दिनों की दिवाली अब के 



आशीष ...रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'


बिल्कुल भी नहीं चाहती थी कि आज बाजार जाऊँ ,

दिये लेकर आऊँ; फिर उन्हें जलाऊँ और 

चौखट मुंडेर पर सजाऊँ।

पापा के बगैर क्या दीवाली क्या होली?

सारे त्योहारों की शोभा उनसे ही थी, वे थे इस घर में, 

तो हर कोना रौशन था। यहाँ का अब तो 

अँधेरों के सिवा यहाँ कुछ भी नहीं दिखता।
...
आज बस
कल फिर
सादर



8 comments:

  1. आभार..
    बढ़िया चयन..
    सादर..

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  2. सार्थक और सीमित चयन- मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार!

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  3. सुंदर रचनाओं का संकलन

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  4. सुंदर रचनाओं का संकलन

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  5. बहुत सुन्दर संकलन |

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  6. सुंदर संकलन।
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार आदरणीय।
    सादर।

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  7. सुन्दर पुष्प गुच्छ से सजी प्रस्तुति में सृजन को सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार!!

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