Monday, November 23, 2020

548 ...पुस्तक कूड़ेदान मिली, ज्ञान हुआ गुमनाम

सादर अभिवादन
शादी ब्याव का मौसम
शुरु हो रहा है...
हमारे आस-पास के लोग
कार्ड छपवाना भूल गए हैं
सभी अपनों को फोन करके बता रहे हैं
बातें तो होती रहेगी
रचनाओँ की ओर चलें...


यूँ बदलते हैं हकदार 
मानो किराएदार 
घर बदल रहा हो।
शख्स  होता है वही
बस! किरदार बदल जाते हैं ।।





खट्टे मीठे स्वाद रहे ,खट्टे मीठे बैर 
खतरे में सम्वाद रहे ,अपने होते गैर

बस्ता और स्कूल रहा, बच्चा है गणवेश 
शिक्षा रोटी भूख हुई, शिक्षक है उपदेश,





पानी संग निचुर जाती हैं आंखें
सूर्य को अर्घ्य देती मां,
मांगती है सलामती की दुआ,
सुखी रहे लाल, घर परिवार,
भरा रहें अंचरा, सुहागन बनी रहे पतोहु,
बिटिया बसी रहे ससुराल, 
और का मांगी छठी मैया!
हर साल भर दियो अंगना!




तुम्हारे इंतज़ार में लिखना चाहती हूँ
युद्ध के दस्तावेजों पर मेरा प्रेम तुम्हारे लिए
जिससे मिट जायेगी युद्धों की तारीखें
पिघल जायेगा औजारों का लोहा
लहरायेगा हवा संघ शांति का परचम
इंगित होगा जिसपर मेरा प्रेम तुम्हारे लिए




ये भी जरूरी नहीं 
हर चीज जल कर धुआँ हो जाये
बिना जले भी कभी कभी धुआँ देखा जाता है

धुऎं का धुआँ बनाकर धुआँ देखने वाला 
खुद कब धुआँ हो जाता है
ये धुआँ जरूर बताता है।
...
बस
शायद कल आएगी दिव्या
सादर



3 comments:

  1. सुंदर चयन और सुंदर प्रस्तुति..।

    ReplyDelete
  2. सुंदर लिंक्स।

    ReplyDelete
  3. मेरी रचना को लिंक में स्थान देने के लिए आभार यशोदा दी।

    ReplyDelete