Saturday, November 14, 2020

539..पर्व दीपावली शुभकामनाएं, पटाखे फुलझड़ी बिलकुल भी नहीं

सादर नमस्कार
पठाकों का आवाज 
में कमी नज़र आई
अच्छी आदतें लागू हो रही है 
और होनी भी चाहिए..
चलिए पिटारा खोलें..

अंधेरे में दीया जलाओ  ...विश्वमोहन कुमार



प्रिय, प्रीत के गीत सुनाओ,
अंधियारे मे दीया जलाओ.
शब्द मेरे और सुर हो तेरे,
जीवन से हो दूर अंधेरे.

विपदा की बदली जब घेरे,
सजनी मेघ राग तुम छेड़े.
छंटे घन हो सुख के उजियाले,
बांध समा कुछ ऐसा गा ले.





जब आईना देखने की उम्र थी, 
तब  हम ख़ुद को सजा ही न सके,
वही मध्यमवर्गीय दृष्टि -कोण, 
लोग क्या कहेंगे, छुप के यूँ ही देखते रहे 
वसंत को पतझर में ढल जाते हुए, 
बहुत कुछ था हमारे दिल में, 
खुल के तुम्हें कभी बता ही न सके,





शीशे को चट्टान 
बना देती है 
धरती को 
आसमान बना देती है।
भूले को 
घर का राह दिखाकर 
भटके को 
इंसान बना देती है।





कुछ
रोशनी
की
करनी हैं
बातें

और
कुछ भी
नहीं

दीवाली
अलग है
इस बार की

पहले
जैसे
अब नहीं
...
अब शायद बस
सादर





7 comments:

  1. आभार..
    सादर शुभकामनाएँ..

    ReplyDelete
  2. आभार दिग्विजय जी। शुभ हो दीपोत्सव सभी के लिये मंगलकामनाएं।

    ReplyDelete
  3. दीपोत्सव की असंख्य शुभकामनाएं सभी को । मेरी रचना को सम्मिलित करने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।

    ReplyDelete
  4. दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ
    उम्दा लिंक्स चयन हेतु साधुवाद

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर रचना प्रस्तुति

    ReplyDelete
  6. सुंदर रचनाओं का संकलन
    शुभकामनाएँ
    व आभार

    ReplyDelete