सादर नमस्कार
आज के अंक में हमारी पसंदीदा
रचनाएँ पढ़िए....
हे क्लांत पथिक
क्यूँ छाँव देख
विश्राम नहीं करते
है ऐसा क्या वहां
क्यूँ पहुँचाने की
जल्दी है तुम्हें |
यह तक भूले
हो कितने परेशान
इस विपरीत मौसम में |
बलवीर ने हताश होकर टेम्पो बन्द कर दिया .उतरती सवारियाँ जेब से गिर गए नोटों जैसी लग रही थीं .बन्द हो या हड़ताल, जब देखो केवल ऑटो, टेम्पो पर ही गाज गिरती है या उन लोगों पर जो आने जाने के लिये टेम्पो के भरोसे रहते हैं . पता नहीं गरीबों का रास्ता बन्द करके कौनसा तीर मारते हैं ये लोग . बन्द कराना ही है तो कार स्कूटर और बाइक सबको बन्द कराएं ना ...
मुक़द्दर एक सा किसका हुआ है ...
सभी कहते हरिक घर में ख़ुदा है।
हमारा सर तभी हर दर झुका है।।
झुका सज़दे में सर है जिस भी दर पे।
सभी के ही लिए मांगी दुआ है।।
रोज सोता हूं
कुछ मुसीबतों को सिरहाने रख
सुबह उठता हूं
तो साथ हो लेती हैं मुसीबतें
कुछ खत्म हो जाती हैं
कुछ नई जुड़ जाती हैं
कुछ बनी रहती हैं साथ लंबे वक्त
तक मुसीबतें भी रहा करती हैं
जब मैंने चाहा
उन्मुक्त हो कर जीना, सभी
दौड़ आए ले के दवा के
नाम पर नमक की
पुड़िया, शायद
उन्हें मेरे
गहरे
ज़ख़्म का एहसास मिल गया।
...
बस..
सभी रचनाएँ सुन्दर हैं - - मेरी रचना शामिल करने हेतु हार्दिक आभार - - नमन सह।
ReplyDeleteबेहतरीन अंक..
ReplyDeleteसादर..
शानदार लिंक्स|मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद यशोदा जी |
ReplyDeleteसुंदर संकलन
ReplyDelete