Monday, October 19, 2020

513 ..अंधेरों की दुनियां उजालों पर भारी है

सादर वन्दे
सप्ताह का पहला दिन
ख़ौफ कम होता जा रहा है 
लोग जागरूक भी हैं
निधन का कॉलम
दिन प्रतिदिन छोटा हो रहा है
शर्म से मरने वाले की संख्या
अलबत्ता नहीं घट रही है

आइए रचनाओं की ओर चलें...

कुछ लिखने का मन होता है तो
कुछ भी लिख देती हूँ
हाँ ! मैं शब्दों के घास, फूस की खटमिट्ठी खेती हूँ
यदि चातक आकर खुशी-खुशी चर ले तो
खूब लहालोट होकर लहलहाती हूँ


बचपन से जवानी तक के 
कुछ मुफ़्त की सलाह देने वालों का 
जिक्र मैंने किया। अभी बुढापा आया नहीं है , 
जब बुढापा आएगा तो 
उसकी भी बात कहूँगा। 
बाकी एक बात कहना है 
कि " बचपन में एकांत से प्रेम था, 
जवानी में तन्हाई से मोहब्बत हो गयी, 
कहीं ऐसा ना हो कि 
बुढ़ापा अज्ञातवास में गुजर जाए।"


वेदनाओं के परत, बंद पलकों में
भस्मीभूत हैं अंजन की तरह,
उस अंधकार कोठरी में
ज़िन्दगी को मिलते
हैं, कुछ पल
जीने के
लिए,
वो कोई सान्त्वना है या वन्य - -
सम्मोहन, कुछ भी नाम
दे दो,


अक्सर रात में मुझे भूतों के दिलकश सपने आते हैं। 
डरिए मत। मैं सच कह रहा हूं। लगता, 
मैं भूतों के बीच हूं। उनसे बातें कर रहा हूं। 
वे मुझसे गप्पे लड़ा रहे हैं। देश-दुनिया 
का हाल-चाल मुझसे ले रहे हैं। ये वो भूत नहीं होते, 
जो अक्सर फिल्मों और किस्से-कहानियों में 
देखने व सुनने को मिलते हैं। 
ये भूत 'कुछ अलग' किस्म के होते। पेशेवर भूतों से अलग। 





खुद में खो कर 
खुद के करीब रहना 
अक्सर...
सुकून ही देता है
सुना है बाहर
अंधेरों की दुनियां 
उजालों पर भारी है
बस
सादर

5 comments:

  1. सुन्दर संकलन व प्रस्तुति - - हार्दिक आभार - - नमन सह । शारदीय नवरात्रि की शुभकामनाएं।

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  2. आह्लादकारी प्रस्तुति । हार्दिक आभार । निधन का कॉलम और शर्म से मरने वाले.... अच्छा लगा कटाक्ष ।

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  3. आभार दिबू..
    बढ़िया रचनाएँँ..
    सादर..

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  4. सभी रचनाएँ शानदार। मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद।

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  5. शुभ पर्व की सभी को मंगलकामनाएं

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