सादर अभिवादन
देखते ही देखते गुज़र गया साल
वो दिन नही रहे तो
इस दिन ने भी पट्टा नही लिखाया है
चला जाएगा ये भी...
रचनाओं की ओर बढ़ें...
खिले हुए फूल ! ....इन्दुसिंह
खिले हुए फूल
सभी को भाते हैं लेकिन
सिर्फ तब तक
जब तक वह खिले रहते हैं
उनके सूखते
झुकते और गिरते ही
वह किसी को याद नहीं रहते।
कहाँ कहाँ खोजूं तुम्हें
यह कैसी शरारत है
क्या कोई काम नहीं मुझको
केवल तुम्हें ही खोजना है |
कितनी बार समझाया है
मुझे यूँ न सताया करो
मैं चाहता तो हूँ,
पर लिख नहीं पाता ऐसी कविताएँ,
अवश हो जाता हूँ मैं,
मेरी लेखनी मुझे अनसुना कर
एक अलग ही रास्ते पर चल पड़ती है,
उसे दुनियादारी की कोई समझ नहीं है.
जरा अपनी जमीन पर गड़ी
नजरें उठाकर
आसमान की ओर देखो,
मैं अपने नए पंख फैलाए
आसमान की ऊंचाई
और
तुम्हारी नीचता भी नाप रही हूँ
एक साथ,
हाँ...अब भी ये आसमान मेरा है!
रात ढलते, ज़िन्दगी चाहती है हौले से कोई,
सिरहाना संवार जाए, उन निस्तब्ध पलों में,
निकटतम गंध वाली कोई चादर,ओढ़ा जाए
बेहतरीन युग्म, उत्कृष्ट सृजन लिंक सभी कलमकारों को बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |मेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद यशोदा जी |
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार, सभी रचनाएं खूबसूरत - - नमन सह ।
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