सादर वन्दे
आज यक ब यक हम
मातारानी की कृपा है
कि वे सब स्वस्थ हैं
जे घर पर ही हैं
आइए चलें रचनाओं की ओर...
आइए चलें रचनाओं की ओर...
नीरवता के, ये कैसे हैं पहरे!
चंचल पग सारे, उत्श्रृंखता के क्यूँ हैं ठहरे!
लुक-छुप, निशाचरों ने डाले हैं डेरे!
नीरसता हैं, क्यूँ इन गीतों में!
बहलाए, अब कौन यहाँ!
तुम उज्जवल छटा,मैं कांति
दिव्यर्शन से ही आती शांति
न हिय ने पाई यह भ्रान्ति ।
तुम प्रेम हो, मैं रागिनी
तेरे सुर की हूँ मैं वादिनी।
तुम शीश हो,मैं हृदयस्थल
एक नॉन स्टिक बर्तन में, घी गर्म करके उसमें कद्दूकस
किया हुआ अदरक डालें अब सेब को छील कर और
कद्दूकस कर के इसमें डाल दीजिये.
इसमें चीनी और पानी मिलकर इसे ढक कर 5 मिनट पकाइए
अब इसका ढक्कन हटाइये और इसमें सभी सूखे मसाले
डाल कर मिलाते हुए भूनिए जब तक कि इसकी
कंसीटेंसी चटनी जैसी न हो जाए.
पूछता है जीवन जल दर्पण से
अपना लुप्त स्रोत, कौन हूँ
मैं, कहाँ है मेरा पैतृक
ग्राम, वो सिर्फ़
सुनता है
और
देखता है किनारे की ओर, उठ
रहा है जहाँ केवल धुंआ
ऋतुओं के सन्धिकाल में
नवरात्रि का उत्सव हर वर्ष आता है
और वातावरण के प्रति हमारी
सजगता को बढ़ाता है.
वर्षा ऋतु का अंत हो रहा है
और पतझर या शरद का आगमन है.
हमारी महान संस्कृति में सामान्य जन को
इस संक्रमण काल में सुरक्षित रखने के लिए ही वर्ष में
दो नव-रात्रियों का विधान किया गया है.
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बस...
सादर
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बस...
सादर
सुन्दर संकलन व प्रस्तुति, मेरी रचना सम्मिलित करने हेतु आभार - - नमन सह ।
ReplyDeleteआभार
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