Thursday, October 22, 2020

516...कुछ अपने दिल की बात करो ...

सादर अभिवादन
कल पंचमी थी
मातारानी के दर्शन
सुबह घर पर ही कर लिए थे
पर मंदिर का कलश ही देखना था
सो पाँच मंदिर के कलश के दर्शन किए
खौफ़ में कमी आई है
पर बेशर्मी में कमी नदारद है
हम भारतीयों की एक आदत सी बनी हुई है
जिस काम के लिए मना करें वही
काम वे पहले करते हैं....
चलिए रचनाओं की ओर...



हाँ फिर से कह रहा हूँ
मुझे प्रेम कविता लिखते रहनी हैं
हर नए दिन में नए नए
झंकार था टंकार के साथ !
समझी ना !


जोड़-जोड़कर जिनको मैंने
जाने कितने गीत बुने,
मेरे गीतों के शब्दों के
पावन अक्षर - अक्षर तुम !!!


शब्द अथाह है 
अपार  है
अनंत है 

पर...
उस "अनंत का अंत" 
शब्द मेरा है l

हर शब्द में एक काशिश ~~~~
एक नया उन्माद होता है ।


राख की ढेरी बनी फिर
आग जो मन में लगी थी
भावना पाषाण बनती
जंग फिर तन में पगी थी
घिर रही थी रात काली
चाँदनी भी छूट भागी।।


हो अद्वितीय पहचान इसे 
साहस खोजो एकांत चुनो,
निज गरिमा को पहचान जरा 
जग में सुवास बन कर बिखरो !
...
इति शुभम्
कल फिर
सादर

4 comments:

  1. सुन्दर लिकों का संयोजन एक से एक उत्तम रचानायें पढ़ने को मिली

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  2. नवरात्रि पर्व की शुभकामनाएं!सुंदर प्रस्तुति, आभार !!

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  3. वाह बहुत ही सुन्दर रचना संकलन सभी रचनाएं उत्तम 👌 मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीया 🙏🌹

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  4. सुंदर संकलन, अच्छी रचनाएँ। बहुत सारा स्नेह व धन्यवाद आपके लिए दी।

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