Friday, October 2, 2020

496..धोती और सिद्धांत जल गए चिता के साथ

 

सादर वन्दे
आज महात्मा जी व शास्त्री जी की जयन्ती है
वो तो सुबह ही मन गई..
लोग थकावट उतारने की तैय्यारी में हैं
पर हम ब्लॉग एग्रीगेटर मजबूर हैं
रचनाओँ का लिंक आपको परोसने के लिए
लीजिए आज प्रकाशित रचनाओं के कुछ...

भीगना है बहुत जरूरी तब
बाद   मुद्दत    करार   आ   जाये ।
गर   तू  आये   बहार  आ   जाये ।।

भीगना   है   बहुत   जरूरी   तब ।
जब समुंदर  में  ज्वार  आ  जाये ।।

वसीयत ...
गांधी के मरने के बाद
चश्मा मिला
अंधी जनता को
घड़ी ले गए अंग्रेज़
धोती और सिद्धांत
जल गए चिता के साथ
गांधीजनों ने पाया
राजघाट

रव में नीरव ..
नाव गर बँधी हो तो भी 
नदिया का बहना 
नाव तले रहता है 
जाना हो गर पार तो 
डालनी होती है
कश्ती मझधार में 
साहिलों पर रहने वालों को 
किनारों का कोई 
आगाज नही होता 


चकोरी ...
उलझी लटें बिखरे घुँघराले लंबे लंबे केश l

सुलझाती अंगुलियाँ दे रही घटाओं को संदेश ll

उमड़ घुमड़ आ मेघा प्रियतम भेष l
बदरी को तरस रही चकोरी की मुँडेर ll 


सूरज ....
क्या आप माँग कर खाते हैं?
क्या आप माँग कर पहनते हैं?
तो फिर माँग कर क्यों पढ़ते हैं?
लेकिन 
इस सूरज का क्या करूँ?
पूरब वाले 
सारा दिन 
जब इसे निचोड़ लेते हैं 
तब
मेरे हाथ आता है
एक सेकण्ड हैण्ड सूरज 
......
आज चित्र एक भी नहीं लगाए
जब आप रचना पढ़ने ब्लॉग पर जाए
तो वहीं देख लीजिएगा
सादर 






3 comments:

  1. व्वाहहहह..
    क्या बात है..
    सादर..

    ReplyDelete
  2. बहुत शानदार प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

    ReplyDelete