Thursday, August 13, 2020

445..हर्षोल्लास व गमों का माहौल तो रोज ही रहता है

हर्षोल्लास व गमों
का माहौल तो रोज ही रहता है
कभी गम का आधिक्य तो
कभी खुशी का बाहुल्य
यही ज़िन्दगी कहलाती है
....
चलिए चले मिली-जुली रचनाओं का अवलोकन करें

है वह  बहुत खुशनसीब
कि तुमने साथ उसका  
हर कदम पर दिया है
उसे  आत्म निर्भर बनाने का
तुमने बीड़ा उठा
उसे  संबल दिया है |


नंदनबन में बारिश है  और कान्हां हमसे रूठे हैं  
इश्क़ रुतों में, मुश्क़ हवा में, हम ही टूटे टूटे हैं

शबनम, गुंचे, भंवरे, खुश्बू, हल्दी मेहंदी और लाली
क्या बतलाऊं तुम जो नहीं तो मुझसे क्या क्या छूटे है


टूट गए जब ताले मन के 
खुलीं बेड़ियाँ मोह, अहम की, 
गोकुल बना महकता उर यह 
प्रकट भये श्यामा सुंदर भी !

वह चितचोर नन्द का लाला 
आनँदघन हरि मुरलीवाला, 
निर्मल मन नवनीत बना जब  
उस घट आकर डाका डाला !


शाम जो ढलते हुए ग़म की चादर ओढ़ती है 
वहीं सेहर होने का वादा भी वोही करती है 

आज ये दिन कई करीबियों को ले डूबा है 
दुःख हुआ बहुत गुज़रते वक़्त का एहसास है 


संक्षिप्त से हो चले,
लम्बी होती, बातों के सिलसिले,
रुके, शब्दों के फव्वारे,
अंतहीन, रिक्त लम्हों से भरे,
दिन के, उजियारे,
रहे, कुछ अधखिले से फूल,
कुछ चुभते शूल,
संक्षिप्त से!


Seed, Sowing, Shoots, Young, Fresh
मैं भी बो दूंगा 
आस-पास वहीं 
कविताओं  के बीज,
डाल दूंगा थोड़ी-सी 
कल्पनाओं की खाद,
भावनाओं का पानी.

आज बस
कल फिर

4 comments:

  1. सुन्दर संकलन. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.

    ReplyDelete
  2. सुप्रभात
    आभार सहित धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना शामिल करने के लिए आज के अंक में |

    ReplyDelete
  3. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार..धन्यवाद यशोदा जी!

    ReplyDelete