Tuesday, August 11, 2020

443..जीवन की अंतिम घड़ियों में, देखो, इसे रुलाना मत

नमस्कार..
ग्यारहवां दिन अगस्त का
शान्त सा है..
लोग सीख रहे हैं
विषाणुओं के साथ
दुनिया एक पाठशाला है
सिखाते रहती है...
....
आज की चुनिन्दा रचनाएँ..

कुल्हड़ वाली चाय यह मन को है ललचाय 
दूध मलाई जब डले स्वाद अमृत बन जाए 

कुल्हड़ वाली चाय की, सोंधी सोंधी गंध 
और इलाइची साथ में,पीने का आनंद 


तन कैदी कोई मन कैदी 
कुछ धन के पीछे भाग रहे, 
तन, मन, धन तो बस साधन हैं 
बिरले ही सुन यह जाग रहे !

रोगों का आश्रय बना लिया 
तन मंदिर भी बन सकता था, 
जो मुरझा जाता इक पल में  
मन पंकज बन खिल सकता था ! 


कहीं उजली,  कहीं स्याह अंधेरों की दुनिया ,
कहीं आँचल छोटा, कहीं मुफलिसी की दुनिया। 

कहीं  दामन में चाँद और  सितारे भरे हैं ,
कहीं ज़िन्दगी बदरंग धुँआ-धुआँ ढ़ल रही है ।



कल रात एक नज्म जगा गई थी,
कहती है शायर अब मेरी जानिब नही आते,
वो जो बिछौना पुराना छोड़ गए थे,
अब उसके चिथड़े  होने लगे हैं,

खामोश रहो या कुछ बोलो
 दिल के सच्चे लगते हो ।।

जैसा भी हो तेरा पहनावा 
जैसा भी पहने रहते हो ।।


यह मुरझाया हुआ फूल है, 
इसका हृदय दुखाना मत।
स्वयं बिखरनेवाली इसकी, 
पँखड़ियाँ बिखराना मत॥

गुज़रो अगर पास से इसके 
इसे चोट पहुँचाना मत।
जीवन की अंतिम घड़ियों में, 
देखो, इसे रुलाना मत॥

seeds
देख धरा का अनुपम हरित श्रृंगार
बार बार मन में उठे एक विचार
वो करू जिसका वर्षों से था इंतजार
कुछ बीज एक गठरी में बांध रख छोड़े 
...
भय सा लग रहा है
आज दो रचनाएं अधिक हो गई है
खैर देखा जाएगा
सादर


3 comments:

  1. आभार आदरणीय मेरी रचना को शामिल करने के लिए सभी रचनाकारों को शुभकामनाए
    बेहतरीन लिंक्स

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  2. भावपूर्ण रचनाओं का सुंदर गुलदस्ता ! आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए !

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