Monday, August 10, 2020

442 ...श्श्श्श शोर नहीं मास्साब हैं और आँख कान मुँह नाक बंद करके शिष्यों को पढ़ा रहे हैं

नमस्कार
आज सप्ताह के पहले दिन
दिव्या उपस्थित है...
पढ़िए आज की चुनिन्दा रचनाएँ


पानी ...ओंकार जी

मेरे गाँव की औरतें 
जमा होती हैं रोज़ 
सुबह-शाम पनघट पर.
घर से लेकर आती हैं 
मटका-भर उदासी,
वापस ले जाती हैं 
थोड़ा-सा पानी 
और ज़रा-सी ख़ुशी.


ख़फ़ा .......अमित जैन ‘मौलिक’

देर लगी क्यों आने में 
कब से हम तन्हा बैठे

प्यार से पूछा उसने जो 
सारा हाल सुना बैठे

खुले कान .....खुले दुकान ...श्रीराम राय

बिना मास्क चलने
दूरी रखने
बचने 
और बचाने को
पूरी तरह
नकार रहे
खुले कान
खुले दुकान

चलते-चलते
एक शिक्षा की दुकान से


परेशान नहीं होना है 
आँख और कान वालो

शेखचिल्ली उलूक
और
उसके मुँगेरीलाल के हसीन 
सपने 

कौन सा पाठ्यक्रम में जुड़ने
जा रहे हैं

जंगल अपनी जगह 
शेर अपनी जगह 
बगुले अपनी जगह 
लगे हुऐ अपनी अपनी जगह 

जगह ही तो बना रहे हैं ।

अब बस
सादर







4 comments:

  1. अच्छा चुनाव..
    साधुवाद..
    सादर..

    ReplyDelete
  2. आभार दिव्या जी। 'उलूक' की एक बासी बकबक को जगह देने के लिये।

    ReplyDelete
  3. सभी रचनाएं बेहतरीन

    ReplyDelete
  4. सुंदर लिंक्स. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार

    ReplyDelete