Wednesday, August 5, 2020

437....आँखों में अमर प्रतीक्षा

आज का अंक
शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी के जन्मदिन
पर सादर समर्पित

आंखों में अमर-प्रतीक्षा ही
बस एक मात्र मेरा धन है
मेरी श्वासों, निःश्वासों में
आशा का चिर आश्वासन है

शब्द, रूप, रस, गंध तुम्हारी
कण-कण में बिखरी
मिलन साँझ की लाज सुनहरी
ऊषा बन निखरी,
हाय, गूँथने के ही क्रम में
कलिका खिली, झरी
भर-भर हारी, किंतु रह गई
रीती ही गगरी।
कितनी बार तुम्हें देखा
पर आँखें नहीं भरीं।


तन खोया-खोया-सा लगता मन उर्वर-सा हो जाता है
कुछ खोया-सा मिल जाता है कुछ मिला हुआ खो जाता है।

लगता; सुख-दुख की स्‍मृतियों के कुछ बिखरे तार बुना डालूँ
यों ही सूने में अंतर के कुछ भाव-अभाव सुना डालूँ

सागर की अपनी क्षमता है
पर माँझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार


शिवमंगल सिंह 'सुमन' के
स्वर में एक कविता
तुम्हें भूला नहीं हूँ

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आज का अंक
उम्मीद है आपको अच्छा लगा होगा।

कल फिर से मिलिए
यशोदा दी से।

श्वेता





1 comment:

  1. सादर नमन स्मृतिशेष सुमन जी को
    आभार सखी.
    कालजयी रचना हेतु
    सादर..

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