Saturday, August 1, 2020

433.दर्द यदि हद से गुजर जाए तो फिर कोई दवा काम नहीं करती

1 अगस्त
इस वर्ष पहले ही दिन से
उत्सवों की शुरुआत हो गई है
बंद को दौर भी चालू है
खैर ये तो होना ही था
और सहना भी पड़ेगा
जीवित जो रहना है..


चाय और कविता ...
Black Coffee, Coffee, Cup, Desk, Drink
शायद मेरी कविता 
चाय पी-पीकर ऊब गई है,
लगता है,अब चाय नहीं,
कुछ और चाहिए उसे.


ये दर्द कब हद से गुजरेगा ....
मेरी फ़ोटो
कहते हैं ना कि दर्द यदि हद से गुजर जाए तो 
फिर कोई दवा काम नहीं करती, 
दर्द खुद ही दवा बन जाता है। 
इसलिए यह बात तो साफ़ है कि 
इस बहादुर वर्ग को भी डर तभी तक सताएगा 
जब तक इसकी जेब और रसोई साथ देगी। 
जिस दिन दोनों रीत गए 
फिर इसे किसी हारी-बिमारी-कोरोना का डर नहीं रहेगा, 
चिंता रहेगी तो अपने परिवार की ! 
क्योंकि है तो वो एक पारिवारिक प्राणी ही ! 


कि मेरे भगवान हो तुम ...

शाम-ए -महफ़िल है- 
मेरे दिल के मेहमान हो तुम।
मेरी चाहत है समंदर! 
फिर क्यों परेशान हो तुम?

सबने मुख मोड़ लिया, 
आँखें हैं नम,व्याकुल मन
दीप आँधी में जला लूँगी  
कि मेरे भगवान हो तुम।


मोहब्बत में तुम कुछ यूँ भीग जाना ....
Romantic hindi poetry
भीगे बदन में 
ठिठुरन जो होगी
मीठा सा दर्द होगा
उसे तुम सह जाना

ये सावन का मौसम
और बारिश की बूँदें
मोहब्बत में तुम
कुछ यूँ भींग जाना


प्रेमचंद... एक पत्र

यूँ तो आपसे मेरा प्रथम परिचय आपकी लिखी कहानी 
'बड़े घर की बेटी' से हुआ। हाँ हाँ जानती हूँ आप मुझे नहीं जानते हैं 
परंतु मैं आपको आपकी कृतियों के माध्यम से बहुत अच्छे से जानती हूँ और आज तक आपके विस्तृत विचारों के नभ की अनगिनत 
परतों को पढ़कर समझने का प्रयास करती रहती हूँ।
...आज के लिए बस
सादर




2 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.

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  2. अच्छी प्रस्तुति। स्तरीय और मोहक।

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