Saturday, March 28, 2020

308..हिन्दी ब्लॉगरों के लिए सुनहरा अवसर

सादर अभिवादन
चौथा दिन है आज
एकान्तवास का...
कड़ी परीक्षा है
सहनशीलता की....
इन इक्कीस दिनों में
सारी अवैध आदतों से 
छुटकारा मिल जाएगा
करते रहेंगे बातें..
बीत जाएँगे 
इक्कीस दिन ...
रचनाए कुछ यूँ है..

यदि आप हिन्दी ब्लॉगर है तो यह सूचना आपके लिए ही है। आप ब्लॉगर ऑफ द ईयर 2020 के लिए प्रतिभाग कर सकते है। ज्ञात रहे पिछले वर्ष 2019 का ब्लॉगर ऑफ द ईयर का अवार्ड राजस्थान के डा. चन्द्रेश छतलानी जी को मिला था, जो लघुकथाओं पर आधारित ब्लॉग का संचालन करते है और उप विजेता दिल्ली के मुकेश सिन्हा जी रहे, जो कविताओं पर आधारित ब्लॉग का संचालन करते है



आज जब एक वैश्विक संकट की स्थिति मँडरा रही हो, तो इसमें प्रार्थना का महत्व और बढ़ जाता है, जन-कल्याण के लिए। चाहें मौन रहे, चाहे घंटा-घड़ियाल-शंख बजाएँ, चाहे मंत्रोच्चार करें, चाहें भजन-कीर्तन गाएँ, चाहे अजान अदा  करें, चाहे गुरुबानी को गाएँ,  जैसे भी करें विश्व-कल्याण की आकांक्षा, ईश्वर के आशीष की कामना , इस घड़ी आपकी सेवा में लगे देवदूतों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता के भावों की अभिव्यक्ति,और सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह हेतु-अपने एकान्त में आप भी प्रार्थना करो ना! नहीं रहेगा 'करोना'।

कोरोना ने सिखाया हमें अहम सबक!! ..ज्योति देहलीवाल
कोरोना (COVID-19) ने सिखाया हमें अहम सबक!!
फिलहाल कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में अपना कहर ढाया हुआ हैं। आज मैं कोरोना को हराने के लिए हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इस बारे में बात नहीं करुंगी क्योंकि ये सब बातें तो हर नागरिक टी वी पर, सोशल मीडिया पर देख और सून रहा हैं। मुझे पूरा विश्वास हैं कि हमारा देश अपनी जागरुकता, एकजुटता और देशभक्ति की ताकत से, हमारे डॉक्टरों और नर्सों के सेवाभाव से, आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति करने वाले हर नागरिक की कर्तव्यनिष्ठा से इस महामारी पर जीत हासिल कर ही लेगा।



मुन्नार, जिसका अर्थ होता है तीन नदियों का संगम, केरल के इडुक्‍की जिले में स्थित है। हिमाचल के शिमला की तरह यह भी अंग्रेजों का ग्रीष्म कालीन रेजॉर्ट हुआ करता था। इसकी हरी-भरी वादियां, विस्तृत भू-भाग में फैले चाय के ढलवां बागान, सुहावना मौसम इसे स्वर्ग जैसा रूप प्रदान करते हैं। हमारी इस यात्रा की यह खासियत थी कि इसमें सम्मिलित लोगों को समुंद्र, मैदान और पहाड़, प्रकृति के इन तीन रूपों को देखने का अवसर समय के कुछ ही अंतराल में प्राप्त हो गया था!  


मानवता पर संकट आया,
नयनों के पट खोल।
नियमों का पालन अब कर ले,
इधर-उधर मत डोल
सुनी नहीं यदि तूने अब भी,
समय की ये पुकार।


वो सूखा फूल फेंकते तो कैसे फेंकते
उसमे किसी की याद की खुशबू बसी रही

उस कोयले की खान में कपड़ें न बच सके
बस था सुकून इतना ही इज्जत बची रही

आज बस इतना ही
कल फिर
सादर


3 comments:

  1. बढ़िया संकलन। मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।

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  2. बहुत सुंदर संकलन।

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  3. बहुत ही सुन्दर संकलन,मेरी रचना को स्थान देने के लिए
    सहृदय आभार आदरणीया 🙏

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