Monday, March 16, 2020

296.. एहसान कौन मानता है आजकल यहाँ

सादर अभिवादन
आज से कार्यदिवस चालू हो गया
श्रीमान जी की शनिवार तक छुट्टी कबूल हुई
फिर हम आ गए..
रचनाएँ कुछ यूँ है...


आपके लहज़े बदल गए ...डॉ. नवीन मणि त्रिपाठी
जब से शबाबे हुस्न के साँचे में ढल गये ।
कितने हुज़ूर आपके लहज़े बदल गए ।।

निकलो न बेनकाब उसूलों के शह्र में 
नीयत से बहुत लोग सुना है फिसल गए ।

एहसान कौन मानता है आजकल यहाँ ।
करने चला हवन तो मेरे हाथ जल गए ।।


साँसें ....आशा सक्सेना

साँसों से जुड़ा है
जीवन का एक एक पल
दिन रात क्षय होती साँसें
चंद लम्हे भी जुड़े हैं जिनसे
जो यादों में समाए हुए है
वे खट्टी मीठी यादें 


औंधा लोटा और अपशकुन ....... ज्योति देहलीवाल
क्या मटके पर औंधा लोटा रखने से अपशकुन होता हैं?
''बाप रे तू
तो शुरु ही हो गई...ये तो बता कि मटके पर लोटे में पानी भर कर रखने में तुझे क्या गलत लगता हैं?''   
''पहले किचन में नल नहीं होते थे। इसलिए हमारे बुजुर्ग यदि पीने का पानी मटके में से निकालना हैं, तो मटके के उपर लोटे में पानी रखते थे ताकि उस पानी से हाथ धो कर साफ़ कर सके। लेकिन अब किचन में हाथ धोने के लिए नल रहते हैं। अत: जब भी हमें मटके में से पानी निकालना हैं तब हम नल के पानी से ही हाथ धोते हैं। अब मटके के उपर लोटे में जो पानी रखा हैं उस पानी का हम क्या करते हैं?

कोरोना भयभीत करो ना ....अनीता जी
आज विश्व एक विचित्र दौर से गुजर रहा है. 
कोरोना के खिलाफ सभी देश 
आपसी भेदभाव को भुला कर एक हो गये हैं. 
चीन से दिसंबर में हुई इसकी शुरुआत के बाद 
इटली, स्पेन और ईरान में कहर बरसाता हुआ 
यह वायरस भारत में भी 
अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है. 
सरकार की तरफ से दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं. 
भीड़भाड़ वाले इलाकों से बचना है,
.....
आज बस इतना ही
कल फिर मिलते हैं
सादर




4 comments:

  1. मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी।

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  2. सांध्य दैनिक मुखरित मौन का यह अंक भी सदा की तरह आपके श्रम की गवाही दे रहा है, आभार !

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  3. धन्यवाद यशोदा जी मेरी रचना को इस अंक में शामिल करने के लिए |

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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति

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