Thursday, March 5, 2020

285.अंदर कुछ और, और लिखा हुआ कुछ और ही होता है

सादर अभिवादन
होली होने वाली है

होने वाली है
दुर्दशा, पानी की
और पार करने वाली है
हद बेशर्मी की
सम्हलिएगा...
हम जानते हैं
आप ऐसे नहीं हैं...

चलिए चलें..

उस रोज पहली बार
प्रेमी का धर्म मालूम हुआ
इसके पहले तक प्रेम ही था
हम दोनों का धर्म


यार फागुन
उजड़ते गांव में भी 
एकाध बार आओ
जहां पैदा तो होता है अनाज
पर रोटियां की कमी है
सर्वहारा वर्ग को
गुझिया के चक्कर में 
कर्ज में ना लादो


आज फिर से मैं
इक दोस्त को अमृत कह रहा हूँ
पर ना जाने क्यों
वो हिलता नहीं.... उठता नहीं....!!
जाने किस तरह का विष
इसे मिला है इस रोज़....!!!


ये भी कोई बात हुईं?
मार्च के महीने में बारिश का शोर हैं!
पहले ही वायरस हैं और बढ़ने की आशंका हैं!
प्रकृति भी नाराज़ रहती हैं,
वो भी अनियमित रहती हमे नियम हीन देख कर
जब मन चाहे बारिश करती


रेल के सफर की 
तरह है जिन्दगी 
और हम सब उसके मुसाफिर। 
मिला है सबको एक- एक डिब्बा। 
किसी को थर्ड क्लास कंपार्टमेंट 
तो किसी को आरामदायक, 
सुखद ए. सी. की 
पर्दों लगी फर्स्ट क्लास कोच। 


तौबा तौबा एक नहीं
कई किये होता है
 दोस्ती वो भी फेसबुक
की करना सबके
बस में कहाँ होता है
इन सब को छोड़िये
सब से कुछ अलग
जो होता है एक
फेस बुक का एक
पेज हो जाना होता है ।
...
बस कल फिर आएँगे
सादर


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