Saturday, March 14, 2020

294..हाथ ठीक से धो लो माया...

देवी जी आज व्यस्त है
सिर्फ व्यस्त ही नहीं त्रस्त भी है

आज हम हैं..सादर नमस्कार..
पहले देखिए कोरोना का डर

फिर रचनाएँ देखिए...

वक्त बदलता जरूर है ... विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता'

"हाथ ठीक से धो लो माया..., 
जब खाने की चीज उठाओ..,
" लैपटॉप-मोबाइल खाने के मेज पर 
रखकर work at home करती माया 
जब नाश्ते के लिए फल उठा रही तो मैंने उसे टोका.. 
केला खाकर उसी हाथ से स्प्रिंग रोल का 
डिब्बा खोलने लगी तो फिर टोक दिया।


इम्तहां रोज लेती रही जिन्दगी ....प्रीती श्रीवास्तव.

प्यार के लिये आँसू बहाना पड़ा।
फिर जमाने से इसको छुपाना पड़ा।।

लोग बदनाम कर दे न हमको सनम।
सोचकर गम बहुत हमको खाना पड़ा।।

आँख भरती रही रात दिन ये मेरी।
दर्द सीनें में फिर भी दबाना पड़ा।।


उन्हें देखो ...गिरिजा कुलश्रेष्ठ

गन्दी नाली साफ करता आदमी
क्या सोचता होगा
देखकर 
गाड़ियों में बैठे ठाठ से
गुजरते लोगों को
क्या महसूस करता होगा
नाक पर रूमाल लगाए


करोना का डर ...अकीब जावेद

बहुत भागम भागम का है माहौल
दूर से देख कर ही कर रहे सलाम
कि हो रहे सारे ठप्प काम धाम
टेंसन में जीवन यापन कर रहे है
सब मिलने से अब क्यों डर रहे है


छत्तीसगढ़ी लोकगाथा ...जयंत साहू

छत्तीसगढ़ के लोक जनमानस म गजब अकन लोकगाथा प्रचलित हावय। आज जतके कन लोकगाथा लिपिबद्ध होय हाबे ओकर ले केऊ आगर ह मुअखरा लोक कंठ म समाये हाबे। चूंकि लोकगाथा के कोनो एक रचनाकार नइ होवे वो तो समकालिक परिशिष्ट म स्वमेंव उध्रित होथे। लोक गाथा के सिरजन के विषय म अनेक विद्वान मन अपन-अपन अनुमान बताथे फेर कोनो ह एकर सही परमान नइ देवय की ओकर सिरजन कब होय हाबे। लोकगाथा के कथानक मन गजब लंबा होथे अउ लोकगाथा के लंबा होय के कारण तत्कालीन परिवेश अउ लोक व्यवहार आए।
...
आज के लिए इतना ही
कल फिर
सादर



3 comments:

  1. आभार
    दूर हुआ सरदर्द
    थोड़ा बाकी है
    कल भी तकलीफ कीजिएगा
    सादर

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  2. मेरे लेखन को यहाँ मान-स्थान देने के लिए हार्दिक आभार आपका..
    सामयिक उम्दा प्रस्तुतीकरण

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  3. मेरे छत्तीसगढ़ी आलेख 'छत्तीसगढ़ की प्रतिनिधी लोकगाथाओं' को आपने स्थान देखकर जो मान बढ़ाया है इसके लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
    आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी, रविन्द्र सिंह यादव जी, स्वेता सिन्हा जी,
    कुलदीप ठाकुर जी और यशोदा अग्रवाल जी आप सभी को मेरा सादर प्रणाम।

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