Monday, March 9, 2020

289 ...मेहनत-मशक्कत से पीछे क्यों हटे

सप्रेम अभिवादन
महिला दिवस बीत चला
पर बुझे दीपक में तनिक सी गर्मी शेष है
और एक खुशी की बात
2017 से बंद ब्लॉग में हलचल..
आज एक रचना देखने को मिली
ब्लॉगर हैं मृदुला दीदी
आज की शुरुआत उनकी ताजी रचना से

प्रिय साँझ ढ़ले
आँगन में
रजनीगंधा की कलियाँ
निज हाथों से
बिखरा देना
मैं चुन लूँगा

सागर सीपी
एक स्थान पर हैं
मोती है खरा

पानी मोती का
नूर चहरे का है
सच्चा परखा


इस बार की होली 
बहुत अजीब होली है.

जब होलिका दहन होगा,
हम किसी कोने में रहेंगे,
बालकनी में खड़े होंगे 
या टी.वी. पर देखेंगे.


तरह-तरह के दिवस मनाना भी अब एक रवायत हो चली है। हमारे सामने एक दिन का नामकरण करके डाल दिया जाता है और हम उसे मनाने लगते हैं। दिन निकल जाता है। कुछ दिन बाद कोई अन्य दिन, कोई दूसरा नाम लेकर हमारे सामने धकेल दिया जाता है। कल सारी दुनिया स्त्री-दिवस मना रही थी। इसी महिने की आखिरी तारीख 31 मार्च को ट्रांसजेंडर-डे मनाने वाली है। अभी चार महीने पहले 19 नवम्बर को पुरुष दिवस भी मना चुकी है

वृद्धा ने स्वाभिमान से कहा- ''जब तक भुजाओं में बल है , तब तक वह मेहनत- मशक्कत से  पीछे क्यों हटे।"

नारी दिवस पर उस अनपढ़ वृद्धा की कर्मठता के समक्ष दरोगा जी नतमस्तक थे । वे मन ही मन बुदबुदाते हैं कि "काश !  किसी विशेष दिवस पर ऐसी भी महिलाओं को प्रतिष्ठित मंच से सम्मान मिलता।"
...
आज बस
कल होली है
नई-पुरानी रचनाओं को लेकर
कल फिर
सादर




2 comments:

  1. मेरे सृजन को पटल पर स्थान देने के लिए आपका आभार यशोदा दी,
    प्रणाम।

    ReplyDelete
  2. सुन्दर संयोजन .. और स्नेहिल आभार..

    ReplyDelete