Friday, March 27, 2020

307..चलो साथी कुछ अच्छे पल ढूँढते हैं

सादर अभिवादन
माता रानी का आज तीसरा दिन
सारी मनोकामनाएँ पूर्ण कर माताश्री

चलिए रचनाओं की ओर..

सिर्फ एक पत्ते पर
रोशनी गिर रही थी
सिर्फ एक पत्ता हरा था
सिर्फ एक पत्ता हिल रहा था
हौले-हौले हिल रहा था
पृथ्वी शांत थी
पूरी पृथ्वी शांत थी
सिर्फ एक पत्ता हिल रहा था. 
- रुस्तम 


काटे-न-कटते थे, कभी वो एक पल,
लगती, विरह सी, थी,
दो पल, की दूरी,
अब, सताने लगी हैं, ये दूरियाँ!
तेरे, दरमियाँ,
तन्हा हैं, कितने ही पल!


लॉक डाउन लगा हुआ है,
हम बंद पड़े हैं घर में।
बोर हो रहे कमरे के अंदर,
पड़े - पड़े बिस्तर में।



चाँद -सितारे करते बातें ,
रात भी बहुत उदास है ।
थका हुआ मन बैठ ये सोचे ,
कितनी निकृष्ट बात है ।।
ऐसी भी क्या भूख ,
कि कुछ भी खा गया कोई ।
किसी एक की मूर्खता पर ,
सम्पूर्ण मनु सृष्टि रोई ।।


आओ मिलजुल के हम कोई हल ढूँढते हैं। 
चलो साथी कुछ अच्छे पल ढूँढते हैं । 

गिरवी हैं बड़े अर्से से ईमान जिनके मंडी में 
हर बशर में आदमीयत वो आजकल ढूँढते हैं ।

जिस समंदर ने रगड़ा है घावों पर नमक 
उसी समंदर में चलो मीठा जल ढूँढते हैं।
...
आज इतना है
कल फिर
सादर


5 comments:

  1. बहुत बढिया प्रस्तुति। सभी रचनाएँ सुंदर सरस लग रही।समय मिलेगी तो पढ़ुँगी। मेरी रचना को साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद।

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  2. सांध्य दैनिक प्रस्तुति में 'आह्वान' को साझा करने के लिए सादर
    आभार यशोदा जी । सदैव की भांति अत्यंत सुन्दर प्रस्तुति ।

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  3. सुंदर सार्थक अंक आदरणीय दीदी। सभी रचनाएँ अति उत्तम👌👌 पर मीना जी किये पंक्तियाँ सोचने पर मजबूर कर गयी --+
    ऐसी भी क्या भूख ,
    कि कुछ भी खा गया कोई ।
    किसी एक की मूर्खता पर ,
    सम्पूर्ण मनु सृष्टि रोई
    सभी को आभार और शुभकामनायें🙏🙏

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