सादर अभिवादन
आज प्रस्थान दिवस है
आज प्रस्थान दिवस है
आज के बाद अतीत हो जाएगा
ये बेचारा..
चर्चाकार के ब्लॉग से की श्रृंखला में
आज है मन का मंथन
ये बेचारा..
चर्चाकार के ब्लॉग से की श्रृंखला में
आज है मन का मंथन
मेरा ये नश्वर जीवन,
महकाए सदा औरों का उपवन,
हृदय में रहे सदा देश प्रेम,
करूं सदा मैं काम नेक, फूल हूं या शूल हूं मैं,
मैं खुद भी नहीं जानता।
मेरा देश हिंदुस्तान है जो सभ्यता सब से महान है,
दिखाती है गीता पथ, ये मिला मुझे वरदान है।
मुझे वेदों का उपहार मिला है,
मां हाटेशवरी से प्यार मिला है,
मेरे आदर्श श्री राम हैं,
कंठ में शिव नाम है,
विवेकानंद का धर्म है
मेरी यही मेरी पहचान है।
अब मन का मंथन से
चुनिन्दा रचनाएँ
अब मन का मंथन से
चुनिन्दा रचनाएँ
ये उनका स्वाभिमान है..,
ये केवल सफेद छड़ी नहीं,
दृष्टिहीनों की पहचान है....
पथ में क्या है,, उन्हे बताती,
आत्म निरभरता का मंत्र सिखाती,
चलते हुए उन्हें सुरक्षा देती,
ये दृष्टिहीन है, चलने वालों को बताती।
किस धर्म के हैं?
इनकी जात क्या है?
न हिंदू को इस से मतलब,
न मुस्लमान को.......
कारखानों या ढाबों पर,
काम कर रहे बच्चों से
नहीं पूछते उनका मजहब।
कोई नहीं पहचानता,
ये उनकी जात, मजहब के हैं....
पति पत्नी का पावन रिशता,
तब रोती है मेंहदी,
क्योंकि उसने ही,
इनके जीवन में
प्रेम के रंग भरे थे......
मेंहदी चाहती है,
सब में प्यार बढ़े,
नहीं थी आंखे,
पर उन दोनों के पास ही
आंखे थी......
एक की आंखों ने
मेरी बुझी हुई
आंखे देखी
...छोड़ दिया मझधार में मुझे.....
जब तुम पापा!
आये थे घर
तिरंगे में लिपटकर
तब मैं बहुत रोई थी....
शायद तब मैं
बहुत छोटी थी,
बताया गया था मुझे,
तुम मर चुके हो....
मुझे याद है पापा!
कहा था जाते हुए तुमने
अग्रिम शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति..
सादर..
Thanks
ReplyDeleteशुभकामनाएं कुलदीप जी के लेखन के लिये। नया साल शुभ हो।
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