Thursday, December 5, 2019

196..जी रहे हैं या यूँ कहें कि जी रहे थे ढेरों परेशानियों संग

सादर नमस्कार
पता नही क्यों
हो गई है बावरी
मेरी कलम
औरतों के जिस्म से सब मर्द बने हैं
मर्दों की जहाँ बात हो, नामर्द खड़े हैं

शेरों से खेलने को पैदा हुए थे जो वो
किसी के नाज़ुक़ बदन से खेल रहे हैं

यहीं नही हो रहा है अनाचार
विदेशों में भी कायम है ...
क्या वास्तव में कलिकाल अंतिम पड़ाव पर है
हम-आप शायद न देख पाए वो जलजला
जब मनु-शतरूपा को नाव में बिठाकर
पूरी पृथ्वी को जलमग्न कर दिया था नारायण ने
शायद वैसा ही कुछ होगा..
लगता है इसबार आग बरसेगी
बहुत बकवास हो गई...
चलें काम पर..

हिम की सतह सा है ये मन देखो
टोह  लेता ही रहे ये निर्वहन , देखो

फिर पिघल रहा है ओ  मेघों इसे सम्भालो
फिर भी चलता रहे आवागमन ! , देखो


अब सारा गुस्सा
पीड़ाएँ हो जायेंगी धाराशायी
बस हौले से हथेली को
दबा कर कह देना
'आल इज वेल'
और फिर हम डूब जाएंगे
अपनी मुस्कुराहटों संग
अपनी ही खास दुनिया में
आखिर इतना तो सच है न कि
बीपी शुगर से
ज्यादा अहमियत रखतें हैं हम
मानते हो न ऐसा !!


एक दिन सामान्य-विज्ञान की कक्षा में शिक्षक पढ़ा रहे थे - 
" बच्चों ! सूरज आग का गोला है। "
उसी समय दोनों भाई-बहन कक्षा में ही ऊँघ रहे थे। शिक्षक महोदय की नज़र उन दोनों पर पड़ते ही वे आग-बबूला हो गए। अपने हाथ की हमजोली ख़जूर की छड़ी सामने के मेज पर पटकते हुए बोले - " का (क्या) रे तुम दोनों रात भर खेत में  मिट्टी कोड़ रहा था का (क्या)? चल ! इधर आके (आकर) दुन्नो (दोनों) मुर्गा बन के खड़ा हो जाओ। "
कलुआ अपनी शरारती आदतानुसार मुर्गा बनने के पहले बोल पड़ा - " सर ! हम तअ (तो) मुर्गा बन ही जाएंगे, पर सुगिया दीदी के तअ (तो) मुर्गी बने पड़ेगा ना !? "
कक्षा के सारे विद्यार्थी ठहाका मार के हँस पड़े। पर प्रतिक्रिया में शिक्षक के चिल्लाते हुए डाँटते ही - " चुप !!! .. शांति से रहो सब। ना तो सब के धर (पकड़) के कूट देंगें। समझे की नहीं !? " सब सटक सीता-राम हो गए।



अनसुने ये गीत मेरे, तू जरा गुनगुना.. 
अनकहा वही, जो है अनसुना, 
आवाज मेरी, जो न अब तलक बना, 
गीत ये मेरे, तू जरा गुनगुना... 



हालात-ए-जिस्म सूरत-ए-जाँ और भी ख़राब 
चारों तरफ़ ख़राब यहाँ और भी ख़राब 

नज़रों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरे 
होंटों में आ रही है ज़बाँ और भी ख़राब 

पाबंद हो रही है रिवायत से रौशनी 
चिम्नी में घुट रहा है धुआँ और भी ख़राब 




5 comments:

  1. व्वाहहहह...
    काफी जल्दबाजी में बनाई प्रस्तुति है ये..
    बढ़िया प्रस्तुति..
    सादर..

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  2. आपको नमन और हर बार की तरह मेरी रचना को साझा करने हेतु पुनः आभार आपका यशोदा जी !

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