Tuesday, December 10, 2019

201 ...आ जाओ अलीबाबा फिर एक बार खेलने के लिये चोर चोर

सादर अभिवादन
देवी जी आज व्यस्त है
और हम भी फ्री हैं
तो पहला कदम सोचे
हम ही रख दें....

चलिए हमारी पसंदीदा रचनाओँ की ओर

सूरज से संवाद ... सुबोध सिन्हा

हे सूरज भगवान (पृथ्वी पर कुछ लोग ऐसा मानते हैं आपको) ! 
नमन आपको .. साष्टांग दण्डवत् भी आपको प्रभु !
हालांकि विज्ञान के दिन-प्रतिदिन होने वाले नवीनतम खोजों के अनुसार ब्रह्मांड में आपके सदृश्य और भी अन्य .. आप से कुछ छोटे और कुछ 
आप से बड़े सूरज हैं। ये अलग बात है कि हमारी पृथ्वी से अत्यधिक 
दूरी होने के कारण उनका प्रभाव या उनसे मिलने वाली धूप हम 
पृथ्वी वासियों के पास नहीं आ पाती।
अब ऐसे में तो आप ही हमारे जीवनदाता और अन्नदाता भी हैं। आपके 
बिना तो सृष्टि के समस्त प्राणी यानि जीव-जंतु, पेड़-पौधे जीवित रह 
ही नहीं सकते, पनप ही नहीं सकते।पृथ्वी की सारी दिनचर्या लगभग 
ठप पड़ जाएगी और हाँ .. 
बिजली की बिल भी दुगुनी हो जाएगी। है ना प्रभु !?


रिश्तों पर बर्फ....... दिलबागसिंह विर्क

रिश्तों पर बर्फ 
जमने और पिघलने का 
कोई मौसम नहीं होता 
अविश्वास, अहम्, स्वार्थ  
जमा देते हैं बर्फ 
विश्वास, वफा, प्यार 
पिघला देते हैं इसे !!


माँ तुझे ढ़ूंढता रहा अपनों में ..व्याकुल पथिक

रिश्ते न संभाल पाया जीवन के
माँ , तुझे ढ़ूंढता रहा अपनों में

बीता बसंत एक और जग में
जो पाया सो खोया मग में ?

माँ, स्नेह फिर से न मुहँ खोले
अरमान सभी कुचल दे उर के


दोहा गीत ..कंचनलता चतुर्वेदी
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सबका मन स्वार्थ भरा,
रखें न परहित भाव।
झोली भरते स्वयं की,
दे दूजे को घाव।

काजल को स्याही बनाके ...नितीश तिवारी
प्रेम गीत- काजल को स्याही बनाके।
तेरी पायल करती शोर है हम जब भी मोहब्बत करते हैं,
इस पायल की छन छन को गवाही बनाके लिख दूँ।

चाँद करता रहता है पहरा, पूर्णिमा की रात को,
तुम कहती हो तो चाँद को सिपाही बनाके लिख दूँ।




खुल जा सिमसिम, उलूक का पन्ना

आ भी जाओ
अलीबाबा

इस से पहले
की देर हो जाये

और
‘उलूक’ को
नींद आ जाये

एक
नये सूरज
उगने के समय ।

अब बस
कल मिलिएगा देवी जी से
सादर



3 comments:


  1. मेरी इस प्रिय रचना को मुखरित मौन के पटल पर स्थान देने के लिए धन्यवाद भाई साहब।
    सभी को प्रणाम।
    शीर्षक बेहतरीन है..

    परंतु अब कोई अलीबाबा नहीं आएगा और आएगा भी तो वह 41वां चोर ठहराया जाएगा।
    यह आधुनिक सभ्य समाज , यह परिवेश , ये काले कोट वाले जेंटलमैन , यह बौधिक वर्ग सभी मिल कर उसे ऐसे न्याय के कठघरे में खड़ा करेंगे , जहाँ से उसे सीधे यमपाश नजर आएगा।
    और वह मरजीना जिसके स्नेह निष्ठा पर उसे अत्यधिक विश्वास है , वह नृत्य करेगी अवश्य , परंतु इन चालीस चोर के मृत्यु गान के लिए नहीं, वरन् अलीबाबा जैसे निश्छल , निर्मल और कर्म के प्रति निष्ठावान व्यक्ति को भ्रमित करने के लिए, उसके पतन के लिए और अपनत्व भरे शब्दों से ऐसे उसे अंधकूप में दफन के लिए , जिसमें तेजाब की बारिश हो।
    फिर भी इन षड़यंत्रकारियों के हाथों अशर्फी हाथ नहीं लगेगी, क्योंकि सोना खोटा नहीं होता है.. ?

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