Wednesday, December 4, 2019

195..आखिर डर के साए में कबतक जीना होगा

सादर अभिवादन
आज एक संग्रहालय की सैर कीजिए
सच में कुछ अलग सा ही लगेगा


भारतीय वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून... गगन शर्मा

चांदबाग, आज जहां दून स्कुल है, वहां 1878 में अंग्रेजों द्वारा स्थापित ब्रिटिश इंपीरियल फॉरेस्ट स्कूल को 1906 में इंपीरियल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट का रूप प्रदान किया गया था। फिर 1923 में आज के विशाल भूखंड पर सी.जी. ब्लूमफील्ड द्वारा निर्मित एक नई ईमारत में 1929 में इसका स्थानांतरण कर दिया गया। 


जिसका उद्घाटन उस समय के वायसराय लॉर्ड इरविन द्वारा किया गया था। शहर के ह्रदय-स्थल से करीब सात की.मी. की दूरी पर देहरादून-चकराता मार्ग पर यह ग्रीको-रोमन वास्तुकला की शैली वाला भव्य, सुंदर, शानदार, अप्रतिम, बेजोड़ भवन अपना सर उठाए बिना प्रयास ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। इसमें एक बॉटनिकल म्यूजियम भी है तरह-तरह के पेड़-पौधों की जानकारी प्रदान करता है। इसके लिए अलग से प्रवेश शुल्क लिया जाता है।

अब चलते है रचनाओँ की ओर...


पहली बार लवली गोस्वामी

विलोम .... लवली गोस्वामी
मैंने कोमल शब्दों के बनने में
दांतों की भूमिका तलाशी   

कठोर शब्दों के बनने में
जीभ की

कोमल और कठोर का उच्चारण किया
और भाषा के धोखे पर हंसी..



ज़िन्दगी हर मोड़ पर है, अलग अलग ...मुक्ता दत्त

कोई ना जाने, कैसे, कब
किसको कोई छोड़ता है-2
हम भी हैं उस दर्द के मारे
जब अपना कोई तोड़ता है-2
पत्थर नहीं, पत्थर नहीं
दिल क़त्ल हो गए इस मोड़ पर।।


मोनालिसा की मुस्कान.! ...अनीता लागुरी

जर्जर पड़े मकानों में,
इंद्रधनुष नहीं उगा सकती हैं।
मोनालिसा की पेंटिंग ने
तीखी की अपनी बरौनियाँ,
और कह डाला कवि से
तुम 21वीं सदी के कवि हो
मै 1503 की एक अनसुलझी रह्स्य
मेरी मुस्कान में विलुप्त कुछ भी नहीं,


हाँ कविता बोलती है ...नरेंद्रपाल जैन

ज़िन्दगी रिश्ते निभाती है स्वयं को तोड़कर,
हाँ नदी सिंधु में जाती पत्थरों को मोड़कर।
प्रीत की मधुशाल में वो बिन पिये ही डोलती है,
हाँ कविता बोलती है, हाँ कविता बोलती है


आखिर कब ? ...रीना मौर्या

हमारा कानून
क्यों नहीं बनाता
कोई मिसाल
की जुल्म के बारे में
सोचकर ही काँप उठे
उन बेदर्दों की आत्मा
और उड़ सके ये बेटीयाँ
बिना किसी डर के
अपनी उड़ान..
आखिर डर के साए
में कबतक जीना होगा
बेटियों को ,
कब देंगे हम उन्हें यह विश्वास
की वो है अब सुरक्षित ?
कब दे पाएँगे हम उन्हें
खुला आसमान ??
आखिर कब ???
...
अब बस..
फिर मिलते हैं कल
सादर








3 comments:

  1. बहुत सुंदर लिंक्स, बेहतरीन प्रस्तुति।

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  2. बेहतरीन प्रस्तुति ,सादर नमन दी

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