Tuesday, December 3, 2019

194 ....यूँ ही अचानक कैसे हुआ इतना बड़ा

एकला ही चलें
200 क़दम तो पूरे
हो ही जाएँगे
सादर अभिवादन
आज की पसंदीदा रचनाएँ
कुछ यूँ है....

सिसकती साँसों  की जालियों  में, 
नवाँकुर खिलाने को प्रतिपल रहते थे आतुर, 
अर्चना का सबल बन सहलाती रही, 
धरा के दामन में न धसी, 
कविता कादम्बिनी कद अपना तलाशती है |


उस जली हुई बेटी की देह को जब पिता अंतिम संस्कार के लिए अग्नि देने लगे तो वह बोल उठी - 'पापा, दोबारा मत जलाइए, बहुत दर्द होता है।' प्रियंका, खूबसूरत, प्रतिभाशाली, भावुक, भावुक इसलिए कि वह बेज़ुबान जानवरों की तकलीफ समझती थी, समाज से भयभीत, भयभीत इसलिए कि अपनी बहन को अंतिम शब्द यही थे 


इतिहास किसी का पुख़्ता नहीं है
चंद दिनांकों व नामों के अलावा
सारे आंकड़े बेबुनियाद है
अलग- अलग किताबों में
किसी एक का अलग-अलग नाम मिल सकता है
उसका वही-वही काम अलग-अलग दिनांकों को हो सकता है।
सम्भवतः ये किताबें आज लिखी गयी हैं
और 2619 साल पुरानी बातें करती हैं।


जब उससे ... 
नजरें मिलती है ,
मेरी भी.. तुम्हारी भी ।
 तो , तार जुड़ते हैं ,
मन के ..मन से..
आ जाती है ।
कुशल-क्षेम ..
मिलना ना मिलना ,
तो बस…
नियति की बात है ।


Image result for Woman warrior
मैं एक हारे हुए युद्ध की
सिपहसालार हूँ
रोज़ अपने चीथड़े संभाले
देखती हूँ अपलक
किसी नए फायरिंग स्क्वाड की
बर्फ आँखों में
उनकी मृत अंतरात्मा
मुझसे आख़िरी बोटी
मांगती है


और
हर बार
एक
दुर्घटना
फिर
झिंझोड़ जाती है

पूछते हुऐ

कितनी बार
और

किस किस

छोटी
घटना से

बचते हुऐ
अपने
आसपास की
आँखे फेरेगा ‘उलूक’

जो
दिखाई
और
सुनाई दे रहा है
....
बस..कल मिलेंगे फिर
सादर

8 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति..
    सादर..

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  2. बहुत सुन्दर संकलन । संकलन में रचना को मान देने के हार्दिक आभार ।

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  3. बेहतरीन प्रस्तुति ,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ,सादर नमन दी

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  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  5. बेहतरीन प्रस्तुति

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  6. माफ़ी चाहती हूँ आदरणीया दी जी वक़्त पर नहीं पहुँची.
    सुन्दर प्रस्तुति में मेरी रचना को स्थान देने के लिये.
    सादर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका

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