Friday, December 13, 2019

204..दो असंगत लोग एक लाचार कंधा

सादर अभिवादन..
दो दिन सखी श्वेता थी यहां पर
कुछ बदलाव तो दिखा होगा आप को

चलिए आज फिर हम हैं...

दो असंगत लोग
एक लाचार कंधा
एक बेपरवाह सर.

दो मिथ्या तर्क
एक स्त्री की श्रेष्ठता
एक पुरुष की पूर्णता.


सर्द हवा की थाप
बंद होते दरवाजे खिडकियां,
नर्म गद्दों में  रजाई से लिपटा तन
और बार बार होठों से फिसलते शब्द
आज कितनी ठंड है!
कभी ख्याल आया उनका


तेरा रूठ जाना,मेरा तुझको मनाना ।
तिरछे से देखना ,फिर खिलखिलाना ।
मुझे भूलता ही नहीं ....

तेरा टकटकी लगाना ,मेरा नजरें झुकाना ।
नजरें हटते ही तेरी ,मेरा पलके बिछाना ।
मुझे भूलता ही नहीं ....


राजनीति की काली कोठर
अफवाहों का बाजार गर्म
आग लगाते नाम धर्म के!
प्राणों की आहुति से
मिली आजादी का
अब  बचा लिहाज नहीं
क्या कीमत का अंदाज नहीं !


बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ

निदा फ़ाजली का यह गीत सुनिए

इसके बाद आज्ञा दें
सादर


4 comments:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर..

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  2. आदरणीया,
    बेहतरीन प्रस्तुति। रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभारी हूँ ।
    सादर ।

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