Wednesday, October 27, 2021

799 ...मेरी है हर साँस तुम्हारी। तुम पर ही मैं सब कुछ हारी

सादर अभिवादन
अक्टूबर जा जा जा
जा कर जल्दी से जनवरी को भेज
बच्चें तरस गए, स्कूल देखे
खाना बनाना सीख गए
अब वे सोचते कुछ और सीखें..
रचनाओं पर एक नज़र....



 तुम ढूँढ़ो दुनिया में ईश्वर।
मेरे तो तुम ही ईश्वर हो।

मेरी है हर साँस तुम्हारी।
तुम पर ही मैं सब कुछ हारी।


मुझे बीहड़ में बिठाकर
मेरे सपनें मलबें में तब्दील कर
तुम चाहते हो मेरी कलम से
रंगीन तितलियों की
उन्मुक्त उड़ान मैं लिखूं ?




शूल भरी राहों से तनिक ना घबराते,  
पग छालों में भी आह नहीं निकालते,

संकट में शोंणित और वेगवान रहता,
अपनी विजय पर कभी नहीं इतराते ।

अपने बचपन को याद करता हूँ,
जो अब सिर्फ यादों में बचा है थोड़ा-थोड़ा
और जो अब लौटकर फिर नहीं आनेवाला
पिता कभी-कभार बुदबुदाते हुए याद आते हैं,
साँप गुजर गया और हम लकीर पीटते रहे

बस
सादर


1 comment:

  1. धन्यवाद आदरणीय
    बढ़िया संकलन

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