Saturday, October 2, 2021

778 ...छोटा कद पर सोच बड़ी थी तेज सूर्य का चमके भाल।

 सादर अभिवादन

आज गांधी जी और शास्त्री जी का जन्मदिवस है
दोनो ही अपने समय के महान विभूति थे...
आज का विशेष अंक आपके सन्मुख...



17 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव पारित कर दुनिया से आग्रह किया गया था कि गाँधीजी को जन्म दिवस को  शांति और अहिंसा पर चलने का प्रण लेते हुए अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाएँ।
गांधी जी के तीन मुख्य सूत्र.....
1) कथनी और करनी में कोई अंतर न होना
गाँधीजी मितव्ययता पर ज़ोर देते थे। वे स्वयं अल्प वस्तुओं के साथ जीवन निर्वाह करते थे। गाँधीजी का यह गुण आज भी उतना ही प्रासंगिक है।

2) व्यवहारिक नज़रिया या दृष्टिकोण ....
उन्हें बौद्ध धर्म और जैन धर्म की अहिंसा की बातों ने बेहद प्रभावित किया। जैन धर्म के मानने वालों का नजरिया अंहिसा के मामले में थोड़ा कट्टर है। वे नाममात्र की हिंसा में भी विश्वास नहीं रखते। वहीं बौद्ध धर्म का नज़रिया  अहिंसा को लेकर लचीला है। 
गाँधीजी ने दोनों के बीच का मार्ग चुना।

3) हर किसी के साथ  संवाद स्थापित करने की कला
अपनी संवाद कला को जरूरत के हिसाब से बदलकर गाँधीजी ऐसा करने में सक्षम होते थे। गाँधी को गाँधीजी बनाने में उनके  संवाद कौशल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।




छोटा कद पर सोच बड़ी थी
तेज सूर्य का चमके भाल।
भारत माँ के गौरव थे वो
कहलाये गुदड़ी के लाल।।

कुर्ता धोती गाँधी टोपी
यही रही उनकी पहचान।
सादा जीवन सदा बिताए
कौन यहाँ उनसे अनजान।।




हाय गजब कैसी करी ये दुश्मन नें चाल।
ताशकन्द में उठ गया भारत माँ कौ लाल॥
भारत माँ कौ लाल वात मित्रन ने कीनी।
घर में लियौ बुलाय, धौंस बहुतेरी दीना॥
जबरन सन्धि कराया कै, दस्तखत लिये कराय।
हाय हमारौ शास्त्री, मुख न दिखायौ आय॥





एक अनंत विश्वास
छा  जाता है जब
जो सदा से वहीं था
सचेत हो जाता है मन उसके प्रति
तो चुप लगा लेता है स्वतः ही
वह अखंड मौन ही समेटे हुए है अनादि काल से
हर ध्वनि हर शब्द को
सारे सवाल और हर जवाब भी वहीं है




ग़ज़ल को गाना मिरे बस की बात कब है मियां
ये कारोबार तो मीरासियो के होते है

"तुफ़ैल' आयेंगे इतने कहाँ से राजकुमार
कि ऐसे ख्वाब सभी लड़कियों के होते है




अंधकार के राज्य में, दीये का संघर्ष,
त्रास हारता है सदा, विजयी होता हर्ष ।

कहीं खेल विध्वंस का, कहीं सृजन के गीत,
यही सृष्टि का नियम है, यही जगत की रीत ।




भर ही जाएं, ना कुरेदो ज़ख़्म कोई,
रहने दो, यूं ही पड़ा,
सह लूंगा, राह की ठोकरें!

टूटे पत्थरों के गीत, कोई क्यूं सुने‌....




है तुम्हारे हवाले वतन साथियों
कर गया कोई हमें नामजद साथियों
सांस् अटकी यहां प्रेम से साथियों
कर हवाले तुम्हारे  वतन साथियों
वक़्त मुश्किल कटा हाथ सबका छूटा
हो गए अजनबी हम तो अब साथियों


आज बस
सादर

2 comments:

  1. 'सांध्य दैनिक मुखरित मौन' शामिल करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार। सभी रचनाकारों को ढेरों शुभकामनाएं। सुंदर संकलन। एक बार फिर से आपका आभार।

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  2. सामयिक विषयों का सुंदर संकलन ।
    आभार !

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