Tuesday, October 5, 2021

781 ..हमारे रास्ते सारे स्वतः ही मिलतें जाएंगे

सादर अभिवादन
कल की प्रस्तुति में कोई टिप्पणी नहीं
से भी हो सकता है है..किसी ने सूचना न देखी हो
या , ये भी हो सकता है कि मैं सूचना देना भूल गई हूँ
चलो कोई बात नहीं, हमारे संग्रह में वृद्धि हुई

आज की रचनाएँ ..



तन्हाइयों में क़ैद था आँसू भी जल में था
ग़म भी तमाम रंग में खिलते कमल में था

महफ़िल में सबके दिल को कोई शेर छू गया
शायर का इश्क,ग़म का फ़साना ग़ज़ल में था




जब मैं बूढ़ा हो जाउंगा तब तुम भी मेरा हाथ पकड़ कर सड़क पार करना। आपकी यह शिक्षा मुझे बहुत अच्छी लगी।सचमुच आज वही स्थिति हो गयी। मेरे कार्यालय से आने का और आपके सब्जी लाने का समय एक ही है।जब मैं आपको सड़क पार करने में असमर्थ पाता हूं



बादलों से घिरी
अंधियारती शाम
या फिर
किसी की याद,
किसी का छोड़ जाना,
किसी मित्र का
हो जाना अजनबी




मुझे याद है
आज भी
तुम्हारी आंखों में
उम्र के सूखेपन के बीच
कोई स्वप्न पल रहा है
कोई
श्वेत स्वप्न।
तुम जानती हो
कोरों में नमक के बीच




खिजाएँ लौट जाएंगी सजन जब मुस्कुराएंगे ।
बहारें संग आयेंगी, भँवर भी गुनगुनाएंगे ।।

नहीं कोई भी गम होगा सजन जब साथ में होगा
हमारी रास्ते सारे स्वतः ही मिलतें जाएंगे ।

सादर 

4 comments:

  1. जी बहुत बहुत आभार आपका यशोदा जी। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए साधुवाद।

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति !सभी रचनाएं बेहतरीन।

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  3. मेरी लघुकथा को स्था देने के लिए हार्दिक आभार।

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  4. बहुत सुंदर प्रशंसनीय संकलन ।

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