Thursday, February 20, 2020

272..बादलों पर घर बनाया, ख्बाव देखा एक प्यारा

स्नेहिल अभिवादन..
आज की रचनाओं की ओर सीधे...

निम्न कोटि के हो रहे ,नेताओं के बोल,
मूल्यों को रख ताक पर,देते ये विष घोल ।
नायक जनता के बनें,करिए दूर विकार ।
अपने हित को त्यागिये,रखिए शुद्ध विचार।
याद करें संकल्प ये ,देश प्रेम आधार ।


इधर उनकी यंत्रवत शोक-प्रतिक्रिया पूर्ण हुई और संयोगवश उसी वक्त चौके से उनकी धर्मपत्नी की आवाज़ आई - " आइए जी बाहर .. खाना लगा रहे हैं। टी वी भी चालू कर दिए हैं। पिछले साल का पुलवामा वाला दिखा रहा है। आइए ना ... "
" आ गए भाग्यवान ! बस खाना खाने से पहले वाली 'शुगर' की दवा तो खा लेने दो।" फिर वाश-बेसिन में 'लिक्विड-शॉप' से हाथ धोते हुए बोले -" वैसे 'जिंजर-लेमन' तंदूरी 'चिकेन' की बड़ी अच्छी ख़ुश्बू आ रही है तुम्हारे 'किचेन' से..आज एक -दो रोटी ज्यादा बना ली हो ना? "
" हाँ जी! ये भी कहने की बात है क्या ? 


रेगिस्तान-वन खेत-खलिहान घर-द्वार, 
मानवीय अस्तित्त्व से जुड़ी बुनियादी तहें, 
इंसानी साँसों को दूभर बनाते अगणित बीज, 
गाजर घास बन गयी है अब मानवता की खीझ।

जीवन के इस कठिन सफर में,
चलते जाना मुश्किल जग में।
राह में कई बवंडर होंगे ,
कई शांत से झोंके भी।
कई राह के रोड़े होंगे ,
कई मील के पत्थर भी।

बसंत तेरे आगमन पर
खिलखिलाई ये धरा भी
इक नजर देखा गगन ने
तो लजाई ये धरा भी

कुहासे की कैद से अब
मुक्त रवि हर्षित हुआ
रश्मियों से जब मिला
तो मुस्कराई ये धरा भी


नाव लहरों पर उछलती,
दिख रहा उद्भ्रांत सागर
वायु के पर को लगाकर,
स्वप्न उड़ते आज तन धर ।
चाँदनी उतरी धरा पर
तब प्रिये ! तुमने पुकारा ।
कल्पना के गाँव में भी ,
कब बना है घर हमारा ।
....
आज रचनाएँ अधिक हो गई है
एक रचना सीधे फेसबुक से है
सादर

7 comments:

  1. बेहतरीन रचनाएँ
    सादर..

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया यशोधरा अग्रवाल जी।आभारी आपकी

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  3. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया यशोधरा अग्रवाल जी।आभारी आपकी

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  4. बेहतरीन रचनाएँ.

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया दीदी जी. मेरी रचना को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार
    सादर

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  6. शानदार मुखरित मौन में मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार एवं धन्यवाद यशोदा जी!

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