Tuesday, February 11, 2020

263...दर्द भी, आनंद भी, सौगात भी, संघर्ष भी है

आज प्रॉमिस डे ...
इस दिन अपने लव्ड वन्स को स्पेशल फील करवाने के लिए गिफ्ट्स देते हैं, डिनर या लंच साथ करते हैं या फिर फीलिंग से भरपूर कई मैसेज वाट्सएप पर भेजते हैं। ऐसे में पढ़ते हैं वो खास मैसेज जो आपकी फीलिंग उनके दिल तक पहुंचाने में आपकी मदद करेगी। 
सादर अभिवादन
इस वादे के साथ
कि यह चिट्ठा बंद नहीं होगा कभी
चलिए रचनाओँ की ओर..

दुग्ध रौशन,
मुग्ध मंद पवन,
रुग्ध ये मन!

बहकी घटा,
हलकी सी छुवन,
गुम ये मन!


तुम जूझ रहे हो स्वयं से, 
या उलझे हो,
भ्रम के मकड़जाल में,    
सात्विक अस्तित्त्व के,   
कठोर धरातल पर या, 
इंसान की देह पर, 
ज़िंदा लाश की तरह, 


धूप या छाया मिले, 
स्वीकारना पड़ता सभी को
पर रखे समभाव कैसे, 
कोई विरला जानता है 

दर्द भी, आनंद भी, 
सौगात भी, संघर्ष भी है
बात ये कि ज़िन्दगी को 
कौन कैसे देखता है !!


काव्यमंच पर आज मसखरे छाये हैं !
शायर बनकर यहाँ , गवैये आये हैं !

पैर दबा, कवि मंचों के अध्यक्ष बने,
आँख नचाके,काव्य सुनाने आये हैं !


"बच्चों को पति के भरोसे छोड़ दो और पति को भगवान् के" 
उसकी मित्र द्वारा ऐसा जया से उस समय कहा गया 
जब वह जीवन में कमबैक करने के बारे में सोचते हुए 
फिर से पति, बच्चा, घर परिवार के गुंजलक से 
बाहर नहीं निकल पा रही थी। 



4 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई आदरणीया ।

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया दीदी जी
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार
    सादर

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  3. सुंदर प्रस्तुति।

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