Wednesday, February 19, 2020

271..तुम्हारे आने वाले कल का आईना हूँ मैं

सादर अभिवादन
आज का चित्र


आदरणीय कुसुम शुक्ला की वाल से
प्रतिक्रिया चाहूँगी
....
चलिए चलें आज की पसंदीदा रचनाओं पर एक नज़र ....


अद्भुत पल ....विभा रानी श्रीवास्तव 'दंतमुक्ता' 
चित्र में ये शामिल हो सकता है: 4 लोग, लोग बैठ रहे हैं और अंदर
पथ पे गड्ढ़े-
तम में बाँह खींचे
गुरु भुवेश ।

मेरा पहली बार अमेरिका आना हुआ या यूँ कहें तो पहली विदेश यात्रा। 
नेपाल बिहार से सटा है, उसके कई शहरों में आना-जाना हुआ तो  
वहाँ जाना विदेश जाना कभी लगा नहीं।
रिक्शा-बस-गाड़ी से विदेश थोड़े न जाते हैं। जब तक गगन छूने का 
एहसास ना हो... काले/भूरे पहाड़ पर श्वेत चादरें ना बिछी दिखे ,
उसके पास समुन्दर छूटकी लगे और रेत की आँधी भी संग हो।


भीड़ में अकेला.....नीलेश माथुर

एक दिन मैं 
अपने सारे उसूलों को 
तिजोरी में बंद कर 
घर से खाली हाथ निकलता हूँ 
और देखता हूँ कि अब मैं 
भीड़ में अकेला नहीं हूँ,


धरा का श्रृंगार...नीतू ठाकुर 'विदुषी'

बादलों ने ली अँगड़ाई, 
खिलखिलाई ये धरा भी। 
ताकती अपलक अम्बर को, 
गुनगुनाई ये धरा भी। 


दुधमुँहा बचपन... सुधा सिंह

क्या कहने 
उस मासूमियत के 
जो किसी वयस्क की चप्पलें 
उल्टे पैरों में पहने 
चली आई थी मेरे दरवाजे पर, 
पाँवों को उचकाकर 
धीरे धीरे अपने 
कोमल हाथों से 
कुंडी खटखटा रही थी
..
आज इतना ही
कल फिर
सादर


2 comments:

  1. शुभ संध्या दीदीजी! बहुत सुंदर प्रस्तुति।सादर नमन।

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  2. अक्स पे खींची
    अनुभव लकीरें–
    वीनस मूर्ति।
    सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना
    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

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