Thursday, February 6, 2020

258..मुश्किल है जमीँ से ज़ुदा होना

सादर अभिवादन
पिछले एक सप्ताह से
मौसम ज़रा गमनीन सा है
पानी कोहरा फिर पानी
ठण्ड मानो पलटकर
फिर आ गई है...
उंगलिया जम सी गई है
सारा कार्यक्रम जम सा गया है
फिर भी...चलिए चलते हैं....


मजहब से ऊपर ....शारदा अरोरा 

हिन्दू होना या मुसलमाँ होना
मजहब से ऊपर है इन्साँ होना

वतन वतन है , जड़ें तेरी
मुश्किल है जमीँ से ज़ुदा होना


जो चल सको तो चलो ...निदा फ़ाज़ली

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

इधर उधर कई मंज़िल हैं चल सको तो चलो
बने बनाये हैं साँचे जो ढल सको तो चलो


अकेला होना और अकेले में रोना ...सवाई सिंह राजपुरोहित

यह बात एकदम सकते हैं कि जो व्यक्ति अकेला होना और अकेले में रोना वह इंसान को बहुत मजबूत बनाता है पर कई बार इंसान टूट भी जाता है अकेलेपन के कारण इसलिए अपनों को टाइम जरूर दें क्योंकि रिश्तो की अहमियत जिस दिन हम समझ जाएंगे


तंज़... मोहित शर्मा ज़हन

"मौज तो तुम गरीब-लेबर क्लास और अमीरों की है। देश का सारा टैक्स तो मिडिल क्लास को देना पड़ता है। एक को सब्सिडी तो दूसरे को लूट माफ़ी।"

आज बस
कल फिर
सादर




1 comment:

  1. Bahut hi Shandar post Sabhi link ko ko samayojit kiya apni post Me Mujhe Jagah dene ke liye bahut bahut dhanyvad 👏👏👏

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